कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ हिन्दी की आदर्श कहानियाँप्रेमचन्द
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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ
उस सुगंधित और मधुर प्रकाश में मदिरा-रंजित नेत्रों से वाजिदअली की वासना उस रूप-ज्वाला को देखते ही भड़क उठी। उन्होंने कहा, ‘रूपा, जरा नजदीक आओ। एक प्याला शीराजी और अपनी लगायी हुई अम्बरी पान की बीड़ियाँ तो दो! तुमने तो तरसा-तरसाकर ही मार डाला।’
रूपा आगे बढ़ी, सुराही से शराब उड़ेली और जमीन में घुटने टेककर आगे बढ़ा दी, इसके बाद उसने चार सोने के वर्क-लपेटी बीड़ियाँ निकालकर बादशाह के सामने पेश की और दस्तबस्ता अर्ज की–‘हुजूर की खिदमत में लौंड़ी वह तोहफा ले आयी है!’
वाजिदअली शाह की बाछें खिल गयीं। उन्होंने रूपा को घूरकर कहा ‘वाह। तब तो आज...’ रूपा ने संकेत किया। हैदर खोजा फूल-सी मुरझायी कुसुम-कली को फूल की तरह हाथों पर उठाकर–पान-गिलौरी की तश्तरी की तरह–बादशाह के रूबरू कालीन पर डाल गया। रूपा ने बाकी अदा कहा–हुजूर को आदाब।’ और चल दी।
एक चौदह वर्ष की, भयभीत, मूर्च्छित, असहाय, कुमारी बालिका अकस्मात् आँख खुलने पर सम्मुख शाही ठाट से सजे हुए महल और दैत्य के सामन नरपशु को पापवासना से प्रमत्त देखकर क्या समझेगी? कौन अब इस भयानक क्षण की कल्पना करे। वही क्षण, होश में आते ही उस बालिका के सामने आया। वह एकदम चीत्कार करके फिर से बेहोश हो गयी। पर इस बार शीघ्र ही उसकी मूर्च्छा दूर हो गयी। एक अतर्क्य साहस, जो ऐसी अवस्था में प्रत्येक जीवित प्राणी में हो जाता है, उस बालिका के शरीर में उदय हो आया। वह सिमटकर बैठ गयी और पागल की तरह चारों तरफ एक दृष्टि डालकर एकटक उस मत पुरुष की ओर देखने लगी।
उस भयानक क्षण में भी उस विशाल पुरुष का सौंदर्य और प्रभा देखकर उसे कुछ साहस हुआ। वह बोली तो नहीं पर कुछ स्वस्थ होने लगी।
नवाब जोर से हँस दिये। उन्होंने गले का वह बहुमूल्य कंठा उतारकर बालिका की ओर फेंक दिया। इसके बाद वह नेत्रों के तीर निरंतर फेंकते बैठे रहे। बालिका ने कंठा देखा भी नहीं, छुआ भी नहीं, वह वैसी ही सिकुड़ी हुई, वैसी ही निर्निमेष दृष्टि से भयभीत हुई नवाब को देखती रही।
नवाब ने दस्तक दी। दो बाँदियाँ दस्तबस्ता आ हाजिर हुईं। नवाब ने हुक्म दिया–इसे गुस्ल कराकर और सब्जपरी बनाकर हाजिर करो। उस पुरुष-पाषाण की अपेक्षा स्त्रियों का संसर्ग गनीमत जानकर बालिका मंत्र-मुग्ध-सी उठकर उनके साथ चली गयी।
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