कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ हिन्दी की आदर्श कहानियाँप्रेमचन्द
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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ
कुँवर साहब से मलूका की वाचालता सही न गयी। उन्हें इस पर क्रोध आ गया; राजा रईस ठहरे। उन्होंने बहुत कुछ खरी-खोटी सुनायी और कहा–कोई है! जरा इस बुड्ढे का कान तो गरम करे, बहुत बढ़-बढ़कर बातें करता है। उन्होंने तो कदाचित् धमकाने की इच्छा से कहा, किंतु चपरासियों की आँखों में चाँदपार खटक रहा था। एक तेज चपरासी कादिर खाँ ने लपककर बूढ़े की गर्दन पकड़ी और ऐसा धक्का दिया कि बेचारा जमीन पर गिरा। मलूका के दो जवान बेटे वहाँ चुपचाप खड़े थे। बाप की ऐसी दशा देख कर उनका रक्त गर्म हो उठा। दोनों झपटे और कादिर खाँ पर टूट पड़े। धमाधम शब्द सुनायी पड़ने लगा। खाँ साहब का पानी उतर गया, साफा अलग जा गिरा। अचकन के टुकड़े़-टुक़डे हो गये। किंतु जवान चलती रही।
मलूका ने देखा बात बिगड़ गयी। वह उठा और कादिर खाँ को छुड़ा अपने लड़कों को गालियाँ देने लगा।
जब लड़कों ने उसी को डाँटा, तो दौड़कर कुँवर साहब के चरणों में गिर पड़ा। पर बात यथार्थ में बिगड़ गई थी। बूढ़े के इस विनीत भाव का कुछ प्रभाव न हुआ। कुँवर साहब की आँखों से मानों अंगारे निकल रहे थे। वे बोले–बेईमान, आँखों के सामने से दूर हो जा। नहीं तो खून पी जाऊँगा।
बूढ़े के शरीर में रक्त तो अब वैसा न रहा था, किंतु कुछ गर्मी अवश्य थी। समझता था कि ये कुछ न्याय करेंगे। परंतु यह फटकार सुनकर बोला–सरकार, बुढ़ापे में आपके दरवाजे पर पानी उतर गया और तिस पर सरकार हमीं को डाँटते हैं। कुँवर साहब ने कहा–तुम्हारी इज्जत अभी क्या उतरी है, अब उतरेगी।
दोनों लड़के सरोष बोले–सरकार, अपना रुपया लेंगे कि किसी की इज्जत लेंगे?
कुँवर साहब (ऐंठकर) –रुपया पीछे लेंगे। पहले देखेंगे कि तुम्हारी इज्जत कितनी है!
चाँदपार के किसान अपने गाँव पर पहुँचकर पंडित दुर्गानाथ से अपनी रामकहानी कह ही रहे थे कि कुँवर साहब का दूत पहुँचा और खबर दी कि सरकार ने आपको अभी-अभी बुलाया है।
दुर्गानाथ ने असामियों को परितोष दिया और आप घोड़े पर सवार होकर दरबार में हाजिर हुए।
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