कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ हिन्दी की आदर्श कहानियाँप्रेमचन्द
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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ
दुर्गानाथ चिंतित हो गये। सोचने लगे कि क्या यहाँ भी उस आपत्ति का सामना करना पड़ेगा, जिससे बचने के लिए इतने सोच-विचार के बाद इस शांति कुटीर को ग्रहण किया था? क्या जान-बूझकर इन गरीबों की गर्दन पर छुरी फेरूँ, इसलिए कि मेरी नौकरी बनी रहे? नहीं? यह मुझसे न होगा। बोलो–क्या मेरी शहादत बिना काम न चलेगा?
कुँवर साहब (क्रोध से)–क्या इतना कहने में भी आपको कोई उज्र है?
दुर्गानाथ (द्विविधा में पड़े हुए)–जी, यों तो मैंने आपका नमक खाया है। आपकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करना मुझे उचित है, किंतु न्यायालय में मैंने गवाही कभी नहीं दी है। सम्भव है कि यह कार्य मुझसे न हो सके। अतः मुझे तो क्षमा कर दिया जाय।
कुँवर साहब (शासन के ढंग से)–यह काम आपको करना पड़ेगा। इसमें आगा-पीछा की गुंजाइश नहीं। आग आपने लगायी है, बुझायेगा कौन?
दुर्गानाथ (दृढ़ता के साथ)–मैं झूठ कदापि नहीं बोल सकता, और न इस प्रकार शहादत दे सकता हूँ।
कुँवर साहब (कोमल शब्दों में)–कृपानिधान, यह झूठ नहीं है। मैंने झूठ का व्यवहार नहीं किया है। मैं यह नहीं कहता कि आप रुपये का वसूल होना अस्वीकार कर दीजिए। जब असामी ऋणी है, तो मुझे अधिकार है कि चाहे रुपया ऋण के मद में वसूल करूँ या मालगुजारी के मद में। यदि इतनी-सी बात को आप झूठ समझते हैं तो आपकी जबर्दस्ती है। अभी आपने संसार देखा नहीं। ऐसी सच्चाई के लिए संसार में स्थान नहीं। आप मेरे यहाँ नौकरी कर रहे हैं। इस सेवक-धर्म पर विचार कीजिए। आप शिक्षित और होनहार पुरुष हैं। अभी आपको संसार में बहुत दिन तक रहना है और बहुत काम करना है। अभी से आप यह धर्म और सत्यता धारण करेंगे तो अपने जीवन में आपको आपत्ति और निराशा के सिवा और कुछ प्राप्त न होगा। सत्यप्रियता अवश्य उत्तम वस्तु है, किन्तु उसकी भी सीमा है। ‘अति सर्वत्र वर्जयेत्।’ अब अधिक सोच-विचार की आवश्यकता नहीं। यह अवसर ऐसा ही है।
कुँवर साहब पुराने खुर्राट थे। इस फैकनेत से युवक खिलाड़ी हार गया।
इस घटना के तीसरे दिन चाँदपार के असामियों पर बकाया लगान की नालिश हुई। समन आये। घर-घर उदासी छा गयी। समन क्या थे। देवी-देवताओं की मिन्नतें होने लगीं। स्त्रियाँ अपने घरवालों को कोसने लगीं, और पुरुष अपने भाग्य को। नियत तारीख के दिन गाँव के गवाँर कंधे पर लोटा डोरी रखे अँगोछे में चबेना बाँधे कचहरी को चले।
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