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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


सैकड़ों स्त्रियाँ और बालक रोते हुए उनके पीछे-पीछे जाते थे। मानो अब वे फिर उनसे न मिलेंगे।

पंडित दुर्गानाथ के लिए ये तीन दिन कठिन परीक्षा के थे; एक ओर कुँवर साहब की प्रभावशालिनी बातें, दूसरी ओर किसानों की हाय-हाय। परंतु विचार-सागर में तीन दिन तक निमग्न रहने के पश्चात उन्हें धरती का सहारा मिल गया। उनकी आत्मा ने कहा–यह पहली परीक्षा है। यदि इसमें अनुत्तीर्ण रहे तो फिर आत्मिक दुर्बलता ही हाथ रह जायगी। निदान निश्चय हो गया कि मैं अपने लाभ के लिए इतने गरीबों को हानि न पहुँचाऊगा।

दस बजे दिन का समय था। न्यायालय के सामने मेला-सा लगा हुआ था। जहाँ-तहाँ श्यामवस्त्राच्छादित देवताओं की पूजा हो रही थी। चाँदपार के किसान झुंड के झुंड एक पेड़ के नीचे आकर बैठे। उनसे कुछ दूर कुँवर साहब के मुख्तार आम, सिपाहियों और गवाहों की भीड़ थी। ये लोग अत्यन्त विनोद में थे। जिस प्रकार मछलियाँ पानी में पहुँच कर कलोलें करती हैं, उसी भाँति ये लोग भी आनन्द में चूर थे। कोई पान खा रहा था, कोई हलवाई की दूकान से पूरियों के पत्तल लिये चला आता था। उधर बेचारे किसान पेड़ के नीचे चुपचाप उदास बैठे थे कि आज न जाने क्या होगा, कौन आफत आयेगी, भगवान का भरोसा है।

मुकदमे की पेशी हुई, कुंवर साहब की ओर से गवाह गवाही देने लगे, ये असामी बड़े सरकश हैं। जब लगान माँगा जाता है तो लड़ाई-झगड़े पर तैयार हो जाते हैं। अबकी इन्होंने एक कौड़ी भी नहीं दी।

कादिर खाँ ने रोकर अपने सिर की चोट दिखायी। सबसे पीछे पंडित दुर्गानाथ की पुकार हुई।

उन्हीं के बयान पर निपटारा था। वकील साहब ने उन्हें खूब तोते की तरह पढ़ा रखा था, किंतु उनके मुख से पहला वाक्य निकला था कि मजिस्ट्रेट ने उनकी ओर तीव्र दृष्टि से देखा। वकील साहब बगलें झाँकने लगे। मुख्तार आम ने उनकी ओर घुमाकर देखा। अहलमद, पेशकार आदि सबके सब उनकी ओर आश्चर्य की दृष्टि से देखने लगे।

न्यायाधीश ने तीव्र स्वर में कहा–तुम जानते हो कि मजिस्ट्रेट के सामने खड़े हो?

दुर्गानाथ (दृढ़तापूर्वक)–जी हाँ, खूब जानता हूँ।

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