कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ हिन्दी की आदर्श कहानियाँप्रेमचन्द
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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ
दूसरे दिन कुँवर साहब पूजापाठ से निश्चिंत हो अपने चौपाल में बैठे, तो देखते हैं कि चाँदपार के असामी झुंड के झुंड चले आ रहे हैं। इन्हें यह देखकर भय हुआ कि कहीं ये सब कुछ उपद्रव न करें, किंतु किसी के हाथ में एक छड़ी तक न थी। मलूका आगे-आगे आता था। उसने दूर ही से झुककर वंदना की। ठाकुर साहब को ऐसा आश्चर्य हुआ, मानों वे कोई स्वप्न देख रहे हों।
मलूका ने सामने आकर विनयपूर्वक कहा–सरकार, हम लोगों से जो कुछ भूल-चूक हुई उसे क्षमा किया जाय। हम लोग सब हुजूर के चाकर हैं, सरकार ने हमको पाला-पोसा है। अब भी हमारे ऊपर यही निगाह रहे।
कुँवर साहब का उत्साह बढ़ा। समझे कि पंडित के चले जाने से इन सबों के होश ठिकाने हुए हैं। अब किसका सहारा लेंगे? उसी खुर्राटे ने इन सबों को बहका दिया था। कड़ककर बोले–वे तुम्हारे सहायक पंडित कहाँ गये? वे आ जाते तो। जरा उनकी खबर ली जाती।
यह सुनकर मलूका की आँखों में आसूँ भर आये। वह बोला–सरकार उनको कुछ न कहें। वे आदमी नहीं, देवता थे। जवानी की सौगंध है, जो उन्होंने आपकी कोई निंदा की हो। वे बेचारे तो हम लोगों को बार-बार समझाते थे कि देखो, मालिक से बिगाड़ करना अच्छी बात नहीं। हमसे एक लोटा पानी के रवादार नहीं हुए। चलते-चलते हम लोगों से कह गये कि मालिक का जो कुछ तुम्हारे जिम्मे निकले, चुका देना। आप हमारे मालिक हैं। हमने आपका बहुत खाया-पिया है। अब हमारी यही बिनती सरकार से है कि हमारा हिसाब-किताब देखकर जो कुछ हमारे ऊपर निकले बताया जाए। हम एक-एक कौड़ी चुका देंगे। तब पानी पियेंगे।
कुँवर साहब सन्न रह गये। उन्हीं रुपयों के लिए कई बार खेत कटवाने पड़े थे। कितनी बार घरों में आग लगवायी। अनेक बार मारपीट की। कैसे-कैसे दंड दिये। और आज ये सब आपसे आप सारा हिसाब-किताब साफ करने आये। यह क्या जादू है।
मुख्तार आम साहब ने कागजात खोले और असामियों ने अपनी-अपनी पोटलियाँ।
जिसके जिम्मे जितना निकला बे कान-पूछ हिलाये उसने सामने रख दिया। देखते-देखते सामने रुपयों का ढेर लग गया। ६००० रुपया बात की बात में वसूल हो गया। किसी के जिम्मे कुछ बाकी न रहा। यह सत्यता और न्याय की विजय थी। कठोरता और निर्दयता से जो काम कभी न हुआ, वह धर्म और न्याय ने पूरा कर दिखाया।
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