कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ हिन्दी की आदर्श कहानियाँप्रेमचन्द
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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ
जब से ये लोग मुकदमा जीतकर आये तभी से उनको रुपया चुकाने की धुन सवार थी। पंडितजी को वे यथार्थ में देवता समझते थे। रुपया चुका देने के लिये उनकी विशेष आज्ञा थी। किसी ने अन्न बेचा, किसी ने बैल किसी ने गहने बंधक रखे, यह सब कुछ सहन किया, परंतु पंडितजी की बात न टाली। कुँवर साहब के मन में पंडितजी के प्रति जो बुरे विचार थे, वे सब मिट गये। उन्होंने सदा ही कठोरता से काम लेना सीखा था। उन्हीं नियमों पर वे चलते थे। न्याय तथा सत्यता पर उनका विश्वास न था। किंतु आज उन्हें प्रत्यक्ष दीख पड़ा कि सत्यता और कोमलता में बहुत बड़ी शक्ति है।
ये आदमी मेरे हाथ से निकल गये थे। मैं उनका क्या बिगाड़ सकता था? अवश्य वह पंडित सच्चा और धर्मात्मा पुरुष था। उसमें दूरदर्शिता न हो, काल-ज्ञान न हो, किंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि निःस्पृह और सच्चा पुरुष था।
कैसी ही अच्छी वस्तु क्यों न हो, जब हमको उसकी आवश्यकता नहीं होती, तब हमारी दृष्टि में उसका गौरव नहीं होता। हरी दूब भी किसी समय अशर्फियों के मोल बिक जाती है। कुँवर साहब का काम एक निःस्पृह मनुष्य के बिना रुक नहीं सकता था। अतएव पंडित जी के इस सर्वोत्तम कार्य की प्रशंसा कवि की कविता से अधिक न हुई।
चाँदपार के असामियों ने तो अपने मालिक को कभी किसी प्रकार का कष्ट न पहुँचाया, किंतु अन्य इलाकों के असामी उसी पुराने ही ढंग से चलते थे। उन इलाकों में रगड़-भगड़ सदैव मची रहती थी। अदालत, मार-पीट, डाँट-डपट सदा लगी रहती थी। किंतु ये सब तो ज़मींदारी के श्रृंगार हैं। बिना इन सब बातों के जमींदारी कैसी? क्या दिन-भर बैठे-बैठे वे मक्खियाँ मारें?
कुँवर साहब इसी प्रकार पुराने ढंग से अपना प्रबन्ध संभालते जाते हैं। कई वर्ष व्यतीत हो गये। कुँवर साहब का कारोबार दिनोंदिन चमकता ही गया।
यद्यपि उन्होंने पाँच लड़कियों के विवाह बड़ी धूमधाम के साथ किये, परन्तु तिस पर भी उनकी बढ़ती में किसी प्रकार की कमी न हुई। हाँ, शारीरिक शक्तियाँ अवश्य कुछ-कुछ ढीली पड़ गयीं। बड़ी भारी चिंता यही थी कि इस बड़ी सम्पत्ति और ऐश्वर्य का भोगने वाला कोई उत्पन्न न हुआ; भांजे भतीजे और नवासे इस रियासत पर दाँत लगाये हुए थे।
कुँवर साहब का मन अब इन सांसारिक झगड़ों से फिरता जाता था। आखिर यह रोना-धोना किसके लिए? अब उनके जीवन-नियम में एक परिवर्तन हुआ।
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