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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


वृद्धा एक महीने पश्चात् तोड़ने वाली लौकियों को छाकती हुई बसंत से जाने को कह रही थी, पर उसकी आत्मा में एक विप्लव हो रहा था। उसे ऐसा भान होने लगा, जैसे वह फिर युवती हो गयी। और एक दिन रात्रि की निस्तब्धता में बसंत के पिता ने जैसे स्वप्न में उसे थोड़ा चूम-सा लिया और...वह बसंत को वक्ष में चिपकाकर सिसकने लगी।

हो...पर वह बसंत के पुत्र की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखेगी। वह उसे कदापि नहीं रखेगी। यह निश्चय था। बसंत निराश हो गया था, पर सबेरे जब वह बालक मन्नू को जगाकर ले जाने के लिए प्रस्तुत हुआ, बिब्बो ने उसे छीन लिया और मन्नू और दस रुपये के नोट को छोड़कर बसंत चला गया।

बिब्बो का दूध अब न बिकता था। तीनों गाय एक के बाद एक बेच दीं। केवल एक मन्नू की बछिया रह गयी थी। कुम्हड़े और लौकी के ग्राहक को भी अब निराश होना पड़ता। मन्नू, पीला कांतिहीन आलसी मन्नू, सिन्दूरी चंचल और शरारती हो रहा था और उदासीन बिब्बो लड़ाकी और घर-गृहस्थ।

महीने में पाँच का मनीआर्डर बसंत भेजता था; पर एक ही साल में बिब्बो ने मकान भी बन्धक रख दिया।

मन्नू की सभी इच्छाओं की पूर्ति अनिवार्य थी। बिब्बो फिर समय की गति के साथ चलने लगी! मोहल्ले में फिर उसकी आलोचना प्रारम्भ हो गयी। मन्नू ने उसका संसार से फिर संबंध स्थापित कर दिया, जिसे छोड़कर वह आगे बढ़ गयी थी; पर एक दिन साँझ को अकस्मात् बसंत आ गया। उसके साथ एक ठिगनी गेहुएँ रंग की स्त्री थी, उसने बिब्बो के चरण छुए, चरण दबाये और फिर कहा–मौसी, न हो मन्नू को मुझे दे दो, मैं तुम्हारा यश मानूँगी।

बसन्त ने रोना मुँह बनाकर कहा–हाँ, किसी का जीवन संकट में डालने से तो अच्छा है, ऐसा जानता तो मैं ब्याह ही क्यों करता?

मौसी ने कहा–अच्छा उसे ले जाओ।

मन्नू दूसरे घर में खेल रहा था। वृद्धा ने काँपते हुए पैरों से दीवार पर चढ़ कर उसे बुलाया।

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