लोगों की राय

कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

14 पाठक हैं

प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


बसंत का पिता वहीं रहने लगा। वह बिब्बो से आयु में कम था। बिब्बो, एकाकी बिब्बो ने भी सोचा, चलो क्या हर्ज है; पर वह गया और एक दिन वह और बसंत दो ही रह गये। बसंत का पिता उन अधिकांश मनुष्यों में था, जो तृप्ति के लिए ही जीवित रहते हैं, जो तृप्ति का भार नहीं उठा सकते। बसंत को उसने अपने हृदय के रक्त से पाला; पर वह पर लगते ही उड़ गया और वह फिर एकाकी रह गयी। बसंत का समाचार उसे कभी-कभी मिलता था। दस वर्ष पहले वह रेल की काली वर्दी पहने आया था और अपने विवाह का निमन्त्रण दे गया। इसके पश्चात् सुना, वह किसी अभियोग में नौकरी से अलग हो गया और कहीं व्यापार करने लगा। बिब्बो कहती कि उसे इन बातों में तनिक भी रस नहीं है। वह सोचती कि आज यदि बसंत राजा हो जाय, तो उसे हर्ष न होगा और उसे यदि कल फाँसी हो जाय तो न शोक। और जब मुहल्लेवालों ने प्रयत्न करना चाहा कि दूध बेचकर जीवनयापन करने वाली मौसी को उसके भतीजे से कुछ सहायता दिलायी जाय, तो उसने घोर विरोध किया।

दिन दो घड़ी चढ़ चुका था, बिब्बो की दोनों बाल्टियाँ खाली हो गयी थीं। वह दुधाड़ी का दूध आग पर चढ़ाकर नहाने जा रही थी कि उसके आँगन में एक अधेड़ पुरुष ५ वर्ष के लड़के की उँगली थामें आकर खड़ा हो गया।

‘अब न होगा कुछ, बारह बजे...’ वृद्धा ने कटु स्वर में कुछ शीघ्रता से कहा।

‘नहीं मौसी...’

बिब्बो उसके निकट खड़ी होकर, उसके मुँह की ओर घूरकर स्वप्निल स्वर में बोली–‘बसंत!’ और फिर चुप हो गयी।

बसंत ने कहा–मौसी, तुम्हारे सिवा मेरा कौन है? मेरा पुत्र बे-माँ का हो गया! तुमने मुझे पाला है, इसे भी पाल दो, मैं सारा खरचा दूँगा।

‘भर पाया, भर पाया’ –वृद्धा कंपित स्वर में बोली।

बिब्बो को आश्चर्य था कि बसंत अभी बूढ़ा हो चला था और उसका पुत्र बिलकुल बसंत के और अपने बाबा के समान था। उसने कठिन स्वर में कहा–बसंत, तू चला जा, मुझसे कुछ न होगा। बसंत विनय की मूर्ति हो रहा था और अपना छोटा-सा संदूक खोलकर मौसी को सौगातें देने लगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book