कहानी संग्रह >> कलम, तलवार और त्याग-1 (कहानी-संग्रह) कलम, तलवार और त्याग-1 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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स्वतंत्रता-प्राप्ति के पूर्व तत्कालीन-युग-चेतना के सन्दर्भ में उन्होंने कुछ महापुरुषों के जो प्रेरणादायक और उद्बोधक शब्दचित्र अंकित किए थे, उन्हें ‘‘कलम, तलवार और त्याग’’ में इस विश्वास के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है
और जो कर बहाल रखे, उनके सम्बन्ध में भी सीधे और साफ़ कायदे बना दिये। मालगुजारी के बंदोबस्त के मुख्य सिद्धांत यह हैं कि जोती-बोयी जानेवाली भूमि का रकबा निश्चित हो। लगान कुछ साल की औसत पैदावर के विचार से जमीन में उत्तम-मध्यम होने का ध्यान रखकर ऐसी मध्यम दर से नियत किया जाए, जिसमें अच्छी-बुरी दोनों तरह की फ़सलों के लिए ठीक पड़े, और किसान को अपनी जोत की जमीन के अतिरिक्त परती जमीन को भी लेने की प्रवृत्ति हो, यह सिद्धांततः तो सरकार के लाभ की दृष्टि से आवश्यक है; पर किसान का लाभ इसमें है कि जमीन पर उसको क़ब्जा रखने का हक़ (यल्मी अधिकार) हासिल हो, जिसमें वह मन लगाकर उसको जोते-बोये और उसकी उर्वरता बढ़ाने का भी यत्न करे, लगान की दर निश्चित और ज्ञात हो, जिससे अहलकारों को उसे ज़्यादा सताने का मौक़ा न मिले, और इतने नरम हो कि हर साल उसे कुछ बचत होती रहे, जिसमें फ़सल मारी जाने पर आसानी से गुजर कर सके। यही वह सिद्धांत थे, जिन पर टोडरमल और मुजफ्फर खाँ की मालगुजारी का बंदोबस्त आश्रित था और वही आज तक मालगुजारी के कारिंदों के आधार हैं। जिले का माल अफ़सर ‘आलिम गुज़ार’ कहलाता था, जिसे अच्छी-बुरी फ़सल का ध्यान रखते हुए मालगुजारी वसूल करने के सम्बन्ध में विस्तृत अधिकार प्राप्त थे, और सूबे का गर्वनर सेनापति होता था।
गणना-शास्त्र (स्टैटिस्टिक्स) की इस जमाने में इतनी उन्नति हुई कि भारत सरकार ने उसका एक स्वतंत्र विभाग ही बना दिया है और सब सरकारी दफ्तरों का बड़ा समय नक्शे तैयार करने में जाता है। और जो नतीजे उनसे निकलते हैं, उनसे निरीक्षण तथा प्रबंध में बड़ी सहायता मिलती है। पर इसकी नींव भी हिंदुस्तान में अकबर ही ने डाली थी, और मुफस्सिल के अफसरान जो दैनिक, साप्ताहिक और मासिक रिपोर्ट भेजा करते थे, उनसे केन्द्रीय अधिकारियों को निगरानी का अच्छा मौक़ा मिलता था।
अब गमनागमन की सुविधा की दृष्टि से अकबर के प्रबंध को देखा जाय, तो दिखाई देगा कि यात्रा-कर तो उसने एकदम उठा दिया था, और सुप्रबंध के कारण हर आदमी निर्भय एक जगह से दूसरी जगह आ जा सकता था। इसके सिवा आरम्भिक राज्य-काल में मुईनुद्दीन चिश्ती के प्रति अपनी सविशेष श्रद्धा के कारण आगरे से अजमेर शरीफ़ तक एक पक्की सड़क बनवा दी थी, जिस पर कोस-कोस भर पर छोटे-छोटे मीनार और कुएँ, और हर मंजिल पर सराय थी, जिसमें मुसाफिरों को पक्का खाना मिलता था। सन् जुल्स के ४२ वें साल में लोक-कल्याण की दृष्टि से इस हुक्म को आम कर दिया; पर जान पड़ता है कि अकबर को इस योजना को पूरा करने का मौक़ा नहीं मिला। सन् जुल्स ४१ में अकाल पड़ा और अकबरनामे को देखने से मालूम होता है कि अकबर ने गरीब मोहताजों की सहायता का विशेष प्रबंध किया था, और इस काम के लिए विशेष कर्मचारी भी नियुक्त किए थे। इससे प्रकट है कि उस अभिनंदनीय व्यवस्था का प्रवर्तक भी अकबर ही था, जिसकी ब्रिटिश सरकार के शासन में, अनेक अकाल कमीशनों की बदौलत बहुत कुछ उन्नति हुई। हमने केवल उन बड़े-बड़े विभागों का संक्षिप्त परिचय दिया है, जिनका प्रभाव जनसाधारण के सुख-दुःख पर पड़ता है। इसके सिवा और भी जितने महकमे थे, जैसे टकसाल, खज़ाना, ऊँटख़ाना, हाथीख़ाना आदि, उनके नियम भी बड़ी सूक्ष्मदर्शिता के साथ बनाए गए थे। सारांश, राज्य का कोई भी विभाग ऐसा न था, जिसको अकबर की बुद्धिमानी से लाभ न पहुँचा हो।
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