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कलम, तलवार और त्याग-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :145
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8500
आईएसबीएन :978-1-61301-190

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स्वतंत्रता-प्राप्ति के पूर्व तत्कालीन-युग-चेतना के सन्दर्भ में उन्होंने कुछ महापुरुषों के जो प्रेरणादायक और उद्बोधक शब्दचित्र अंकित किए थे, उन्हें ‘‘कलम, तलवार और त्याग’’ में इस विश्वास के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है


राज्य-प्रबंध की उत्तमता इन्हीं दो-चार बातों पर अवलंबित होती है–वैयक्तिक स्वाधीनता शांति और व्यवस्था, करों का नरम होना और बँधी दर से लिया जाना, रास्तों का अच्छी हालत में रहना आदि। और इस दृष्टि से अकबर के राज्य-काल पर विचार किया जाय, तो वह किसी से पीछे न दिखाई देगा। वैयक्तिक स्वाधीनता की तो यह स्थिति थी कि हर आदमी को अख्तियार था कि जो धर्म चाहे स्वीकार करे। इस विषय में यहाँ तक व्यवस्था थी कि कोई हिंदू बालक बचपन में मुसलमान हो जाय, तो बालिग़ होने पर अपने पैतृक धर्म को पुनः ग्रहण कर सकता था। और कोई हिंदू स्त्री किसी मुसलमान के घर में पायी जाय, तो वारिसों के पास पहुँचायी जाए।

आज के समय में पादरी लोग व्यक्ति-स्वातंत्र्य की आड़ में विभिन्न जातियों के अनाथ बच्चों के साथ जो बर्ताव किया करते हैं या कहीं जनाना मिशनों के जरिए अपढ़ स्त्रियों के मन में अपने पैतृक धर्म के प्रति विरक्ति उत्पन्न करके जिस तरह घर बिगाड़ने का कारण हुआ करते हैं, उसके वर्णन की आवश्यकता नहीं।

शांति-रक्षा के लिए भी अकबर ने बहुत ही बुद्धिमत्ता-पूर्ण आदेश निकाले थे, जैसे कि जरायमपेशा लोगों और अन्य जातिवालों की निगरानी के लिए हर मुकाबले में एक-एक आदमी को, जो ‘मीर महल्ला’ कहलाता था, जिम्मेदार बना देने और कोतवाल व चौकीदारों के कर्त्तव्यों की जिम्मेदारियों की सूची से प्रकट होता है। लोगों की फ़रियाद सुनने और उनके आपस में झगड़े निबटाने के लिए काज़ी और मीर अदल नियुक्त थे, जिनमें काज़ी का काम जाँच करना और मीर अदल का निर्णय सुनाना था। सबकी निगरानी के लिए एक उच्च अधिकारी सदरजहाँ नाम से नियुक्त था। कर्त्तव्यों के इस विभाग से प्रकट होता है कि न्याय-दान का काम कैसी सावधानी से होता होगा। और खूबी यह है कि अदने-से-अदना आदमी बिना किसी खर्च के इस व्यवस्था से लाभ उठा सकता था; क्योंकि उस जमाने में न कोई स्टाम्प कानून था और न वकील-मंडली।

कर-व्यवस्था की ओर आरम्भ से ही अकबर का जो ध्यान था, उसकी चर्चा पहले आनुषंगिक रूप से हो चुकी है। उसने बड़ी ही दृढ़ता और बुद्धिमत्ता के साथ उन सब करों को एकबारगी उठा दिया, जो राष्ट्र की उन्नति में बाधक थे या लोगों का दिल दुखाते थे।

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