कहानी संग्रह >> कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह) कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)प्रेमचन्द
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महापुरुषों की जीवनियाँ
मिडिल तक पढ़ने के बाद मौलाना सलीम पानीपत से लाहौर पहुँचे, जहाँ मौलाना फ़ैजुलहसन साहब सहारनपुरी से अरबी पढ़ी, जो उस समय ओरीयंटल कालिज के अरबी के प्रोफेसर थे। तफ़सीर (कुरान की व्याख्या) भी उन्हीं से पढ़ी। फ़िक़ाह (इसलामी धर्मशास्त्र) और तर्क तथा दर्शनशास्त्र का अध्ययन मौलाना अब्दुल अहद टौंकी से किया। यह सारी पढ़ाई महज शौक़ की चीज और स्वतंत्र कार्य था। एंट्रेंस और मुन्शी फ़ाज़िल के सिवा विश्वविद्यालय की और कोई परीक्षा पास नहीं की। हाँ, विश्वविद्यालय के अध्यापकों से पाश्चात्य दर्शन, विज्ञान, रसायन-शास्त्र और गणित का अध्ययन किया, पर इस सिलसिले में भी कोई परीक्षा नहीं दी। क़ानून पढ़कर वकालत करने का विचार था, और कानून के दरजे में भरती भी हो गए थे; पर जीविका की आवश्यकता से लाचार होकर यह विचार त्याग देना पड़ा और भावलपुर रियासत के शिक्षा-विभाग में नौकरी कर ली।
एजर्टन कालेज भावलपुर में ६ साल काम करने के बाद रामपुर रियासत के हाईस्कूल के हेड मौलवी के पद पर बुला लिए गए; पर यह सिलसिला छः महीने से अधिक न चल सका, क्योंकि जनरल अज़ीमुद्दीन, जो मौलाना को मानते थे, अचानक क़तल कर दिए गए। इधर मौलाना भी ऐंठन के रोग से पीड़ित होकर ६ साल तक खाट पर पड़े रहे। इसके बाद आपने जलंधर के एक मशहूर हकीम से (जो हकीम महमूद खाँ के सहपाठी थे) यूनानी तिब्ब का अध्ययन किया और इसी तौर पर डाक्टरी का भी ज्ञान प्राप्त कर पानीपत में चिकित्सा कार्य आरम्भ किया, जो कई साल तक सफलता पूर्वक चलता रहा।
इसी समय मौलाना हाजी आपको अपने साथ अलीगढ़ ले गए और सर सौयद अहमद खाँ से मिलाया। सर सैयद की पारखी निगाह ने उस दुर्लभ रत्न को पहचान लिया और आग्रह करके अपने पास रहने पर राज़ी कर लिया और फिर मरते दम तक उन्हें अपने पास से हटने न दिया। मौलाना कभी किसी बात पर नाराज होकर अलीगढ़ से चले जाते, तो सर सैयद अपने ख़ास दोस्त मौलवी जैतुलआबिदीन को उनके पीछे-पीछे स्टेशन तक भेजते और मौलाना सलीम खींच-खाँचकर सर सैयद के दरबार में वापस लाये जाते। सर सैयद का नियम था कि जो शास्त्रीय या धर्म संबंधी विषय विचारणीय होते, उन पर मौलाना सलीम के साथ बहस-मुबाहसा करते थे। दोनों दो पक्ष ले लेते और विचारणीय प्रश्न के एक-एक अंग को लेकर उस पर खूब बहस-मुबाहसा और खण्डन-मण्डन करते। अन्त में किसी सिद्धान्त पर पहुँचकर विवाद समाप्त कर दिया जाता। इस सहायता के अतिरिक्त सलीम सर सैयद को ग्रंथ-रचना में भी मदद देते थे और उनके लेखों का मसाला इकट्ठा किया करते थे। अलीगढ़ गज़ट और ‘तहजीबुल अख़लाक़’ में लेख भी लिखते थे।
सर सैयद अहमद के देहान्त के बाद मौलाना सलीम ने हाजी इसमाईल ख़ाँ साहब रईस बतावली के सहयोग से ‘मुआरिफ’ नामक मासिक निकाला, जिसका बड़ा आदर हुआ। इसी समय मौलाना के छोटे भाई हमीदुद्दीन साहब ने ‘हाली प्रेस’ के नाम से पानीपत में एक छापाखाना खोला, जो कईसाल तक चलता रहा। अलीगढ़ कालेज के विद्यार्थियों की मशहूर हड़ताल समाप्त होने के बाद स्वर्गवासी नवाब मुहसिनुलमुल्क ने मौलाना को ‘अलीगढ़ गज़ट’ की सम्पादकी के लिए बुलाया। मौलाना कई साल तक इस कार्य को बड़े उत्साह और तत्परता के साथ करते रहे। बाद में बीमारी से लाचार होकर इस्तीफा देकर घर लौट गये, और कई साल तक एकान्तवासी रहे। फिर जब लखनऊ के क्षितिज पर ‘मुसलिम गज़ट’ का उदय हुआ, तो पत्र के संचालकों को आप ही उसका संपादन-भार उठाने के योग्य दिखाई दिए और मौलाना हाली के आग्रह से आपने यह पद स्वीकार कर लिया।
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