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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502
आईएसबीएन :978-1-61301-191

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महापुरुषों की जीवनियाँ


किसी कला के सौन्दर्य को पहचानने, समझने और उससे आनन्द प्राप्त करने की योग्यता एक अर्जित गुण है, जो बिना कठोर श्रम, मनोनिवेश और अभ्यास के प्राप्त नहीं हो सकती। काव्य या संगीत की सच्ची और मार्मिक रसानुभूति प्राप्त करने के लिए इन्हीं बातों की आवश्यकता है। कौन नहीं जानता कि अनभ्यस्त दृष्टि सच्चे और झूठे मोती, काँच के टुकड़े और हीरे में कठिनाई से विभेद कर सकती है। यह साधारण बात है कि एक गँवार अरसिक व्यक्ति ऊँचे से ऊँचे पहाड़, सुन्दर से सुन्दर झील और अद्भुत उद्यान में वैसे ही उदासीन रहता है, जैसे सूखी रोटी और झोपड़े से प्रभात की सुनहरी छटा, चाँदनी रात की मनोहारिता, नदीकूल का प्राणपोषक समीर, दूर्वादल की मखमली हरियाली, उसके लिए साधारण अर्थरहित बातें हैं। उसको इनके सौन्दर्य की अनुभूति ही नहीं, यद्यपि यही वस्तुएँ हैं, जो एक संस्कृत रुचिवाले को आनन्द-विभोर कर सकती हैं।

रेनाल्ड्स ने इन चित्रों के गुणों और विशेषताओं की बड़े विस्तार से विवेचना की है। कहीं उनके रंग-विधान के रहस्यों का उद्धाटन किया है। कहीं विभिन्न चित्रकला विशारदों की विशेषताओं की तुलना है। इटली में चित्रकारों के कई रंग या शैलियाँ हैं। रोम, वेनिस, फ्लोरेंस, मिलान प्रत्येक भिन्न-भिन्न रंग का केन्द्र है। रेनाल्ड्स ने हर एक रंग की खूबियों और बारीकियों की विस्तार से विवेचना की है; पर स्वयं किसी रंग का अनुसरण नहीं किया। चित्रकार को अपनी तुलना और निरीक्षण की शक्तियों पर खूब ज़ोर डालना चाहिए। यह आवश्यक नहीं है कि अपने चित्रों के लिए वह दूसरों की पुस्तकों से नियम ढूँढें। चित्रों के अवलोकन और समीक्षा से उसे अपने नियम आप निकाल लेने चाहिए। नियम चित्रों से बनाए गए हैं, न कि चित्र नियमों से।

रेनाल्ड्स कहता है– ‘‘चूँकि नकल करने में दिमाग़ को कुछ मेहनत नहीं करनी पड़ती, इसलिए धीर-धीरे उसका ह्रास हो जाता है और उपज तथा मौलिक कल्पना की शक्तियाँ, जिनको खास तौर से काम में लाना चाहिए, इस अनभ्यास के कारण नष्ट हो जाती हैं।’’ इटली में वह तीन साल रहा, और हर रंग और हर ढंग के चित्रों और चित्र संग्रहों को अध्ययन की दृष्टि से देखा। परन्तु इंग्लैण्ड लौटकर उसने चित्रकला के जिस अंग को अपनाया, वह था शबीहनिगारी अथवा आकृति चित्रण। इसका एक कारण तो संभवतः यह होगा कि उस समय इंग्लैण्ड में कुछ क़द्र थी तो इसी की, जैसा कि होगार्थ के एक चित्र से प्रकट होता है। दूसरा कारण यह था कि जैसा कि उसने स्वभावतः वह ऊँची कल्पना और उपज न पायी थी, जिसके बिना धार्मिक और ऐतिहासिक चित्र बनाना संभव नहीं है।

रोम से वापस आने पर वह कुछ दिनों देश में विचरण करता रहा। फिर लंदन में बस गया। जब उसने दो-एक चित्र बनाए, तो चित्रकारों ने हल्ला मचाना शुरू किया; क्योंकि उन चित्रों में प्रचलित रुचि और रीति का अनुसरण नहीं किया गया था। पर यह हो-हल्ला अधिक दिन तक न टिक सका। ग्राहक जब सौदा अच्छा देखता है, तब खुद मोल लेता है। उसे फिर इसकी परवाह नहीं होती कि दूसरे कलाकार उसके विषय में क्या कहते हैं। संभ्रांत पुरुष और स्त्रियाँ दल के दल पहुँचने लगीं। हर रईस की यह इच्छा होती थी कि चित्रकार मुझे वीर पुरुष या दार्शनिक बनाकर दिखाए। प्रत्येक भद्र महिला चाहती थी कि मैं स्वर्ग की अप्सरा बना दी जाऊँ, मेरे चेहरे की झुर्रियाँ तनिक भी दिखाई न दें। रेनाल्ड्स की निगाह गज़ब की पैनी थी, सबकी इच्छा पूरी कर देता था। वह कहा करता था कि शबीह बनानेवालों के लिए ऐसे स्वभाव की आवश्यकता होती है, जैसे डाक्टरों का होता है। उन्हें हर बात में अपने ग्राहकों का मान रखना पड़ता है।

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