कहानी संग्रह >> कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह) कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)प्रेमचन्द
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महापुरुषों की जीवनियाँ
रेनाल्ड्स को विद्वानों की संगति बड़ी प्रिय थी। शाम को चार बजते ही उसकी मेज़ सजा दी जाती थी और गुणीजन उसके इर्द-गिर्द जमा होने लगते थे। कवि अपनी कविता वहाँ सुनाते और काव्य रसिकों से दाद पाते थे। जानसन इस मंडली के नेता थे। गोल्डस्मिथ भी कभी-कभी आ निकलते और अपनी सरलता भरी बातों तथा बालोचित चेष्टाओं से मंडली का मनोरंजन करते थे। धुरन्धर राजनीतिज्ञ और वक्ता एडमण्ड बर्क ही अकसर दिखाई देते थे, पर वह स्वभाव के अधिक विनोदप्रिय और चुलबुले न थे। रेनाल्ड्स विद्वानों का आदर ही न करता था, अक्सर उनकी आर्थिक सहायता भी करता था। जिस व्यक्ति की बड़ाई जानसन और बर्क की लेखनी से निकली हो, उसके अमरत्व लाभ में काल कब बाधक हो सकता है ?
१७६० ई० में रायल एकेडमी की नींव पड़ी। इंग्लैण्ड में यह चित्रकला की नियमित शिक्षा का पहला यत्न था, जिसकी आबोताब में कई सदियाँ गुजर जाने पर भी कोई अन्तर नहीं आया। रेनाल्ड्स इस विद्यालय का अन्तकाल तक अध्यक्ष रहा।
ऊपर कहा जा चुका है कि रेनाल्ड्स के हृदय में पोप कवि के लिए बड़ा आदर था। पोप को जब काव्य रचना से अवकाश मिलता, तो चित्रकारी किया करते। हाथ के एक पंखे पर उन्होंने एक यूनानी कहानी को ज़री के तारों से चित्रित किया था। यह पंखा बाजार में नीलामी होने के लिए आया। रेनाल्ड्स को इसकी खबर मिली, तो उसने एक आदमी भेज दिया कि वह ३० पौंड तक बोली बोलकर इस दुष्प्राप्य वस्तु को खरीद ले। मगर वह हजरत ३० शिलिंग से आगे न बढ़े। आखिर एक दूसरे खरीददार ने उसे दो पौंड पर ले लिया। रेनाल्ड्स को इस पंखे का इतना शौक था कि उसने दूना दाम देकर उसे नए खरीददार से खरीद लिया।
एक दावत के मौके पर जानसन, बर्क, गेरिक, गोल्डस्मिथ सब जमा थे। आपस में खूब गप हो रही थी। अकस्मात् किसी ने कहा—आओ, एक-दूसरे को मृत्यु का कुतबा कहें, पर शर्त यह है कि वह आशु रचना हो। इस पर लोगों ने अपना-अपना कवित्व दिखाना आरम्भ किया। गेरिक को शरारत जो सूझी, तो व्यंग्योक्ति के कुछ पद्य कहे, जिसमें गोल्डस्मिथ की खबर ली गई थी। गोल्डस्मिथ को यह शरारत बहुत बुरी लगी। इसके जवाब में उन्होंने ‘बदला’ नाम से एक ज़ोरदार कविता लिखी। दुःख है कि इस जन्म सिद्ध कवि की यही अंतिम रचना थी। ऐसा बेपरवाह, ऐसा मस्त स्वभाव का और ऐसी कल्पनावाला कवि अँग्रेजी भाषा में फिर न उत्पन्न हुआ। यह लोकोत्तर प्रतिभा जिस देह में छिपी थी, वह कुछ अधिक सुन्दर न थी। रेनाल्ड्स ने गोल्डस्मिथ का जो चित्र खींचा है, उसमें वह बहुत ही कमजोर दिखाई देता है। पर उसकी बहिन का कहना है कि रेनाल्ड्स ने जितनी चापलूसी इस चित्र के बनाने में खर्च की, उतनी और किसी चित्र में नहीं की। रूप और गुण में अन्तर होना असाधारण बात नहीं है।
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