कहानी संग्रह >> कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह) कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)प्रेमचन्द
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महापुरुषों की जीवनियाँ
१७७१ ई० में रेनाल्ड्स ने उगोलीनो (Ugolino) का चित्र बनाया। यह इटली के सुप्रसिद्ध कवि दान्ते की एक रचना का नायक है। पर रेनाल्ड्स जैसा चित्रकार, जो रमणियों के होंठ और ग्रीवा का श्रृंगार करने में अपनी कला का उपयोग करता रहा हो, दुःख और विपत्ति की कहानी को किस प्रकार चित्रित कर सकता है। दान्ते का दृढ़शक्ति नायक रेनाल्ड्स के आलेखन में क्षुधा क्षीण और विपन्न दिखाई देता है। उसके वज्र संकल्प और महानुभावता का तनिक भी परिचय नहीं मिलता। पर रेनाल्ड्स की पेंसिल से जो कुछ निकलता था, उसका आदर होना निश्चित था। एक रईस ने इस चित्र को ४०० पौंड में खरीद लिया। इसी साल जुलाई महीने में रेनाल्ड्स आक्सफ़र्ड की सैर को गया, जहाँ उसकी बड़ी आवभगत हुई और सम्मानरूप में ‘डाक्टर आफ ला’ (कानून के आचार्य) की उपाधि प्राप्त हुई। यहाँ उसकी मुलाकात डॉक्टर बीटी से हुई, जिसकी गणना उन दिनों विद्वानों और विचारकों में थी। ‘सत्य की अपरिवर्तनशीलता’ पर उसने एक पुस्तक लिखी थी, जिसमें उसने गिबन, वाल्टेयर और ह्यूम जैसे स्वाधीनचेता विद्वानों की निन्दा की थी। रेनाल्ड्स स्वयं दर्शनशास्त्र से परिचित न था, इसलिए उसके हृदय में डाक्टर बीटी के लिए बड़ा आदर उत्पन्न हो गया।
जब वह लंदन आया, तो उसने बीटी का एक चित्र बनाया, जो उसकी सर्वोत्तम कृतियों में है। बीटी आक्सफ़र्ड के पंडितों के पहनावे में बैठा है। ‘सत्य की अपरिवर्तनशीलता’ उसकी बग़ल में है। उसके पार्श्व में सत्य का देवता खड़ा है, जो नास्तिकता, धर्मविमुखता और अवज्ञा पर विजयी हो रहा है। इन पराजित आकृतियों में से, एक बहुत दुबली और विलासप्रिय दिखाई देती है। यह नास्तिकता का चित्र है और वाल्टेयर से मिलती है। दूसरी हृष्ट-पुष्ट, मोटी-ताजी है। यह धर्मविमुखता की तसवीर है और ह्यूम से मिलती है। तीसरी अवज्ञा का चित्र है और गिबन का प्रतिबिम्ब जान पड़ती है। गोल्डस्मिथ ने इस चित्र को देखा, तो उसके रोष की सीमा न रही। बोला, ‘‘आप ऐसे गुणी के लिए इस हद तक चापलूसी पर उतर आना बड़ी ही निन्दनीय बात है। आपको वाल्टेयर जैसे महामति पुरुष को बीटी जैसे मूर्ख बकवासी के मुकाबले में ज़लील करने का क्योंकर साहस हुआ ? बीटी और उसकी पुस्तक दस बरस में विस्मृति के गर्त में विलीन हो जायगी, पर आपकी कृति और वाल्टेयर की कीर्ति अमर है।’’ गोल्डस्मिथ ने बहुत ठीक कहा था। बीटी का अब कोई नाम भी नहीं जानता, पर वाल्टेयर, ह्यूम और गिबन के नाम दुनिया में सूर्य की तरह चमक रहे हैं।
रेनाल्ड्स के चित्रों का रंग टिकाऊ न होता था। शोख और भड़कीले रंगों को वह खुद नापसन्द करता था, पर उसके अधिकतर चित्र चटकीले ही दिखाई देते हैं। इसका कारण सम्भवतः यह है कि उसे अपने ग्राहकों का मन रखना था। उस समय की लोकरुचि चटकीले चित्रों को अधिक पसन्द करती थी। वह अपने रंग-विधान के नियम और विधि किसी को भी न बताता था। प्रिय से प्रिय शिष्यों को भी उसने अपने रंगों का मसाला न बताया। उसकी यह कृपणता बिलकुल भारतीय गुणियों की जैसी थी, जो अपने गुण और करतब अपने साथ ले जाते हैं। हाँ, वह स्वयं पुराने उस्तादों के रंगरोगन की विधियों की जाँच-पड़ताल किया करता था। उसने अपनी कमायी का बहुत बड़ा हिस्सा चित्रकला के उत्कृष्ट नमूनों को खरीदने में खर्च किया। उसका संग्रह आज तक मौजूद होता, तो वह इस ललित कला की बहुमूल्य निधि समझा जाता। पर रेनाल्ड्स ने उन्हें शोभा श्रृंगार के लिए न खरीदा था, खोज और अनुसंधान के लिए खरीदा था। एक चित्र को लेकर वह चिकित्सकों की तरह चीड़फाड़ करता था, जिससे उसे मालूम हो जाए कि अस्तर किस रंग का है, उस पर कौन रंग दिया गया और कौन-कौन से रंग एक में मिलाए गए थे। इस परीक्षा के बाद तसवीर किसी काम की नहीं रह जाती थी।
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