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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502
आईएसबीएन :978-1-61301-191

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महापुरुषों की जीवनियाँ


रेनाल्ड्स के चित्रों से प्रकट होता है कि वह प्रकृति का बड़ी सूक्ष्म और मार्मिक दृष्टि से निरीक्षण किया करता था। अपनी कला के हीरे विभिन्न खानों से निकालता। कैसी ही तुच्छ सम्मत्ति क्यों न हो, उस पर अवश्य ध्यान देता। बच्चे तो मानो उसके शिष्य ही थे। उसका कथन था कि बच्चों की चेष्टा और अंगभंगी बनावट से रहित होने के कारण मोहक होती है। बच्चे उसकी चित्रशाला में आते, तो उनकी चेष्टाओं को वह बड़े ध्यान से देखा करता और जब वह मारे खुशी के फूल उठते और चित्रों की भावभंगी का अनुकरण करने लगते, तो इस दृश्य से उसे बड़ा आनन्द मिलता। अपने एक संस्मरण में वह लिखता है, ‘मेरी समझ में नहीं आता कि अनभिज्ञ (अनधिकारी ?) व्यक्ति का मत चित्रों के विषय में क्यों न स्वीकार किया जाए ? जैसे अगर कोई साधारण आदमी। किसी चित्र को देखकर कहे कि इसका आधा चेहरा क्यों स्याह है या नाक के नीचे काला धब्बा क्यों है, तो मैं यह नतीजा निकाल लूँगा कि रंग गहरा हो गया है या अच्छी तरह साफ़ नहीं किया गया। अगर यह रंग प्रकृति के अनुरूप होते, तो किसी का ध्यान उनकी ओर न जाता।’’

रेनाल्ड्स की ख्याति दिन-दिन बढ़ती जाती थी। १७८५ ई० में रूस की सुप्रसिद्ध महारानी केथराईन ने उससे एक तसवीर की फ़रमाइश की। महीनों के सोच-विचार के बाद उसने एक विषय चुना, जो कल्पना और रोचकता की दृष्टि से साधारण है। महारानी केथराईन संकल्प व विचारों की दृढ़ता में अपना सानी न रखती थीं। इतिहास इसका गवाह है। इसलिए रेनाल्ड्स ने शिशु हरक्युलीज को दो साँपों का गला घोंटते हुए दिखाया। यद्यपि केथराईन को ऐसी जटिल कल्पना के समझने की बुद्धि न थी, फिर भी उसने दिल खोलकर क़द्रदानी की।

५०० पौंड पुरस्कार और एक सोने की सन्दूकची, जिसमें उसका चित्र था, उपहार रूप में भेजी।

उन्हीं दिनों इंग्लैंड के एक मनचले प्रकाशक ने शेक्सपियर की रचनाओं के सचित्र संस्करण निकालने का विचार किया।

रेनाल्ड्स ने उसके लिए तीन चित्र बनाए। पहला चित्र उस हास्यावतार का है, जिसका नाम अँगरेज़ी साहित्य में दृष्टांत बन गया है। पिक एक बहुत ही चपल चुलबुले स्वभाव का विदूषक है, जो रंगीले बादशाह आठवें हेनरी का सखा है। रेनाल्डस ने इस चित्र में सचमुच करामात कर दी है। उसका हाथ कोई शरारत भरी चेष्टा करने को उद्यत दिखाई दे रहा है और आँखों से किसी को छेड़ने, किसी से कोसे जाने और गालियाँ सुनने की लालसा टपक रही है। दूसरा चित्र मैकबेथ का है, जिसमें सरोवर और चुड़ैलों का दृश्य दिखाया गया है। इस रंग में उसके और भी उत्तमोत्तम चित्र विद्यमान हैं।

सर जोशुआ रेनाल्ड्स अब ६६ बरस का हो गया था और यद्यपि धन मान में कोई कमी न हुई थी, पर दोस्तों के उठ जाने का दुःख इनसे मिलने वाले सुख से अधिक था। गोल्डस्मिथ, जानसन, बर्क, गैरिक सब एक-एक करके साथ छोड़ते गए। यहाँ तक कि १७८९ ई० में उसके नाम भी काल का बुलावा आ पहुँचा। आँखों का ज्योति जाती रही। १७९२ ई० में उसने इस नाशवान जगत् को त्यागकर परलोक को पयान किया।

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