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नाटक-एकाँकी >> करबला (नाटक)

करबला (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :309
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8508
आईएसबीएन :978-1-61301-083

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अमर कथा शिल्पी मुशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांचक विवरण लिए हुए एक ऐतिहासित नाटक है।


कई आवाजें– सुनो, सुनो, खामोश।

जियाद– हां, मैं ग़ैरत से, ग़रूर से नहीं डरता, क्योंकि यही वह ताक है, जो किसी कौम को जालिम के हाथ से बचा सकती है। खुदा के लिए उस जुल्म की नाकदारी न कीजिए, जिसने आपकी ग़ैरत को जगाया। यही मेरी मंशा थी, यही यजीद की मंशा थी, और खुदा का शुक्र कि हमारी तमन्ना पूरी हुई। अब हमें यकीन हो गया है कि हम आपके ऊपर भरोसा कर सकते हैं। जालिम उस्ताद की भी कभी-कभी जरूरत होती है। हज़रत हुसैन जैसा पाक-नीयत दीनदार बुजुर्ग आपको यह सबक न दे सकता था। यह हम जैसा कमीना, ख़ुदगरज़ आदमियों ही का काम था। लेकिन अगर हमारी नीयत खराब होती, तो आप आज मुझे यहां खड़े होकर उन रियायतों का एलान करते न देखते, जो मैं अभी-अभी करने वाला हूं। इन एलानों से आप पर मेरे क़ौल की सच्चाई रोशन हो जायेगी।

कई आवाजें– खामोश, खामोश, सुनो-सुनो।

जियाद– खलीफा, यजीद का हुक्म है कि कूफ़ा और बसरा का हरएक बालिग मर्द पांच सौ दिरहम सालाना खजाने से पाए।

बहुत-सी आवाजें– सुभानअल्लाह, सुभानअल्लाह।

जियाद– और कूफ़ा व बसरे की हरएक बालिग औरत दो सौ दिरहम पाए, जब तक उस का निकाह न हो।

बहुत-सी आवाजेंन– सुभानअल्लाह, सुभानअल्लाह।

जियाद– और हरएक बेवा को सौ दिरहम सलाना मिलें, जब तक उसकी आंखें बंद न हो जायें, वह दूसरा निकाह न कर ले।

बहुत-सी आवाजें– सुभानअल्लाह, सुभानअल्लाह।

जियाद– यह मेरे हाथ में खलीफ़ा का फ़रमान है। देखिए, जिसे यकीन न हो। हरएक यतीम को बालिग होने तक सौ दिरहम सलाना मुकर्रर किया गया है। हर एक जवान मर्द और औरत को शादी के वक्त एक हजार दिरहम एकमुश्त खर्च के लिए दिया जायेगा।

बहुत-सी आवाजें– खुदा खलीफा यजीद को सलामत रखे। कितनी फैयाजी की है।

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