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नाटक-एकाँकी >> करबला (नाटक)

करबला (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :309
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8508
आईएसबीएन :978-1-61301-083

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अमर कथा शिल्पी मुशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांचक विवरण लिए हुए एक ऐतिहासित नाटक है।


पहरेदार ने कहा– पी ले।’’ भाई ने उत्तर दिया– ‘‘कैसे पी लूं?’’ जब हुसैन और उनके बाल-बच्चे प्यासे मर रहे हैं, तो मैं किस मुंह से पी लूं?’’ पहरेदार ने कहा– यह तो जानता हूं, पर करूं क्या, हुक्म से मजबूर हूं!’’ अब्बास के आदमी मश्के लेकर नदी की ओर गए, और पानी भर लिया। रक्षक-दल ने इनको रोकने की चेष्टा की, पर ये लोग पानी लिए हुए बच निकले।

हुसैन ने फिर अंतिम बार संधि करने का प्रयास किया। उन्होंने उमर-बिनसाद को संदेसा भेजा कि ‘‘आज मुझसे रात को, दोनों सेनाओं के बीच में, मिलना।’’ उमर निश्चित समय पर आया। हुसैन से उसकी बहुत देर तक एकांत में बात हुई। हुसैन ने संधि की तीन बातें बताई– (१) या तो हम लोगों को मक्के वापस जाने दिया जाये, (२) या सीमा-प्रांत की ओर शांतिपूर्वक चले जाने की अनुमति मिले, (३) या मैं यजीद के पास भेज दिया जाऊं। उमर ने ओबैदुल्लाह को यह शुभ सूचना सुनाई, और वह उसे मानने के लिये तैयार भी मालूम होता था, किंतु शिमर ने जोर दिया कि दुश्मन चंगुल में आ फंसा है, तो उसे निकलने न दो, नहीं तो उसकी शक्ति इतनी बढ़ जायेगी कि तुम उसका सामना न कर सकोगे। उमर मज़बूत हो गया।

मोहर्रम की ९ वीं तारीख को, अर्थात हुसैन की शहादत से एक दिन पहले, कूफ़ा के दिहातों से कुछ लोग हुसैन की सहायता करने आए। औबेदुल्लाह को यह बात मालूम हुई, तो उसने उन आदमियों को भगा दिया, और उमर को लिखा– ‘‘अब तुरंत हुसैन पर आक्रमण करो, नहीं तो इस टाल-मटोल की तुम्हें सज़ा दी जायेगी।’’ फिर क्या था; प्रातःकाल बाइस हज़ार योद्धाओं की सेना हुसैन से लड़ने चली। जुगून की चमक को बुझाने के लिये मेघ-मंडल का प्रकोप हुआ।

हुसैन को मालूम हुआ, तो वह घबराए। उन्हें यह अन्याय मालूम हुआ कि अपने साथ अपने साथियों और सहायकों के भी प्राणों की आहुति दें। उन्होंने इन लोगों को इसका एक अवसर देना उचित समझा कि वे चाहें, तो अपनी जान बचावें, क्योंकि यजीद को उन लोगों से कोई शत्रुता न थी। इसलिए उन्होंने उमर-बिन-साद को पैग़ाम भेजा कि हमें एक रात के लिये मोहलत दो। उमर ने अन्य सहायकों तथा परिवारवालों को बुलाकर कहा– ‘‘कल ज़रूर यह भूमि मेरे खून से लाल हो जायेगी। मैंने तुम लोगों का हृदय से अनुगृहीत हूं कि तुमने मेरा साथ दिया। मैं अल्लाहताला से दुआ करता हूं कि वह तुम्हें इस नेकी का जवाब दे। तुमसे अधिक वीरात्मा और पवित्र हृदयवाले मनुष्य संसार में न होंगे मैं तुम लोगों को सहर्ष आज्ञा देता हूं कि तुममें से जिसकी जहाँ इच्छा हो, चल जाय, मैं किसी को दबाना नहीं चाहता, न किसी को मजबूर करता हूं। किंतु इतना अनुरोध अवश्य करूँगा कि तुममें से प्रत्येक मनुष्य मेरे आत्मीय जनों में से एक-एक को अपने साथ ले ले। संभव है, खुदा तुम्हें तबाही से बचा ले, क्योंकि शत्रु मेरे रुधिर का प्यासा है। मुझे पा जाने पर उसकी और किसी की तलाश न होगी।

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