नाटक-एकाँकी >> करबला (नाटक) करबला (नाटक)प्रेमचन्द
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अमर कथा शिल्पी मुशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांचक विवरण लिए हुए एक ऐतिहासित नाटक है।
हानी– अगर मेरा दुश्मन भी मेरी पनाह में आता, तो मैं दरवाजा न बंद रखता।
जियाद– अगर तुम अपनी खैरियत चाहते हो, तो मुसलिम को मेरे हवाले कर दो। वरना कलाम पाक की कसम, फिर आफताब की रोशनी न देखोगे।
हानी– या अमीर, अगर आप मेरे जिस्म के टुकड़े-टुकड़े कर डालें, और उन टुकड़ों को आग में डालें, तो भी मैं मुसलिम को आपके हवाले न करूंगा। मुरौवत इसे कभी क़बूल नहीं करती कि अपनी पनाह में आने वाले आदमी को दुश्मन के हवाले किया जाए। यह शराफत के खिलाफ है। अरब की आन के खिलाफ है। अगर मैं ऐसा करूं, तो अपनी ही निगाह में गिर जाऊंगा। मेरे मुंह पर हमेशा के लिए स्याही का दाग़ लग जायेगा और आनेवाली नस्ल मेरे नाम पर लानत करेंगी।
कीस– (हानी को एक किनारे ले जाकर) हानी, सोचो, इसका अंजाम क्या होगा? तुम पर, तुम्हारे खानदान पर, तुम्हारे कबीले पर आफत आ जाएगी। इतने आदमियों को कुर्बान करके एक आदमी की जान बचाना कहां की दानाई है?
हानी– कीस, तुम्हारे मुंह से ये बातें जेबा नहीं देती? मैं हुसैन के चचेरे भाई के साथ कभी दग़ा न करूंगा, चाहे मेरा सारा खानदान कत्ल कर दिया जाये।
जियाद– शायद तुम अपनी जिंदगी से बेजार हो गए हो।
हानी– आप मुझे मकान पर बुलाकर मुझे कत्ल की धमकी दे रहे हैं। मैं कहता हूं कि मेरा एक कतरा खून इस आलीशान इमारत को हिला देगा। हानी बेकस, बेजार और बेमददगार नहीं है।
जियाद– (हानी के मुंह पर सोंटे से मारकर) खलीफा का नायब किसी के मुंह से अपनी तौहीन न सुनेगा, चाहे वह दस हजार कबीले का सरदार क्यों न हो।
हानी– (नाक से खून पोंछते हुए) जालिम! तुझे शर्म नहीं आती कि एक निहत्थे आदमी पर वार कर रहा है। काश मैं जानता कि तू दग़ा करेगा, तो तू यों न बैठा रहता।
सुले०– जियाद! मैं तुम्हें खबरदार किये देता हूं कि अगर हानी को कैद किया, तो तू भी सलामत न बचेगा।
[जियाद सुलेमान को मारने उठता है, लेकिन हज्जाज उसे रोक लेता है।]
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