उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
राजा साहब ने त्योरी चढ़ाकर कहा–मेरे पास तो आज तक कोई आसामी शिकायत करने नहीं आया। जब उनको कोई शिकायत नहीं है, तो आप उनकी तरफ़ से क्यों वकालत कर रहे हैं?
चक्रधर–आपको आसामियों का स्वभाव तो मालूम होगा? उन्हें आपसे शिकायत करने का क्यों कर साहस हो सकता है?
राजा–यह मैं नहीं मानता। आसामी ऐसे बे सींग की गाय नहीं होते। जिसको किसी बात की ख़बर होती है, वह चुप नहीं बैठा रहता। उसका चुप रहना ही इस बात का प्रमाण है कि उसे अखर नहीं, या है तो बहुत कम। आपके पिताजी और दीवान साहब यही दो आदमी कर्ता-धर्ता हैं, आप उनसे क्यों नहीं कहते?
चक्रधर–तो आपसे कोई आशा न रखूँ?
राजा–मैं अपने कर्मचारियों से अलग कुछ नहीं हूँ।
चक्रधर ने इसका और कुछ जवाब न दिया। दीवान साहब या मुंशीजी से इस मामले में सहायता की याचना करना अंधे के आगे रोना था। क्रोध तो ऐसा आया कि इसी वक़्त जगदीशपुर चलूँ और सारे आदमियों से कह दूँ, अपने घर जाओ। देखूँ, लोग क्या करते हैं। समिति के सेवकों के साथ रियासत में दौरा करना शुरू करूँ, देखूँ लोग कैसे रुपये वसूल करते हैं; पर राजा साहब की बदनामी का ख़याल करके रुक गए। अभी राजभवन ही में थे कि मुंशीजी अपना पुराना तहसीलदारों के दिनों का ओवरकोट डाले, मोटरकार से उतरे और इन्हें देखकर बोले–तुम यहाँ क्या करने आये थे? अपने लिए कुछ नहीं कहा?
चक्रधर–अपने लिए क्या कहता? सुनता हूँ, रियासत में बड़ा अन्धेर मचा हुआ है।
वज्रधर–यह सब तुम्हारे आदमियों की शरारत है। तुम्हारी समिति के आदमी जा-जाकर आसामियों को भड़काते रहते हैं। इन्हीं लोगों की शह पाकर वे सब शेर हो गए हैं, नहीं तो किसी की मज़ाल न थी कि चूँ करता। न जाने तुम्हारी अक्ल कहाँ गई है।
चक्रधर–हम लोग तो केवल इतना ही चाहते हैं कि आसामियों पर सख्ती न की जाये और आप लोगों ने इसका वादा भी किया था; फिर यह मारधाड़ क्यों हो रही है?
वज्रधर–इसीलिए की आसामियों से कह दिया गया है कि राजा साहब किसी पर ज़ब्र नहीं करना चाहते। जिसकी खुशी हो दे, जिसका न हो, न दे, तुम अपने आदमियों को बुला लो, फिर देखो, कितनी आसानी से काम हो जाता है। नशे का जोश ताकत नहीं है। ताकत वह है, जो अपने बदन में हो। जब तक प्रजा खुद न सँभलेगी, कोई उसकी रक्षा नहीं कर सकता। तुम कहाँ-कहाँ उन पर हाथ रखते फिरागे? चौकीदार से लेकर बड़े हाकिम तक सभी उनके दुश्मन हैं। मान लो, हमने छोड़ दिया; मगर थानेदार है, पटवारी है कानूनगो है, माल के हुक्काम हैं। सभी उनकी जान के ग्राहक हैं। तुम फ़कीर बन जाओ, सारी दुनिया तो तुम्हारे लिए संन्यास न लेगी? तुम आज ही अपने आदमियों को बुला लो। अब तक तो हम लोग उनका लिहाज़ करते आये हैं; लेकिन रियासत के सिपाही उनसे बेतरह बिगड़े हुए हैं। ऐसा न हो कि मार-पीट हो जाये।
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