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उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


युवक–ज़नाब, आप सब कुछ हैं। मैं तो आपको अपना मुरब्बी समझता हूँ।

मुंशी–कहाँ तक पढ़ा है आपने?

युवक–पढ़ा तो बी० ए० तक है, पर पास न कर सका।

मुंशी–कोई हर्ज़ नहीं। आपको बाज़ार के सौदे पटाने का कुछ तज़ुर्बा है? अगर आपसे कहा जाये कि जाकर दस हज़ार की इमारती लकड़ी लाइए, तो आप किफ़ायत से लाएँगे?

युवक–जी, मैंने तो कभी लकड़ी खरीदी नहीं।

मुंशी–न सही, आप कुश्ती लड़ना जानते हैं? कुछ  बिनवट-पटे के हाथ सीखे हैं? कौन जाने, कभी आपको राजा साहब के साथ सफ़र करना पड़े और कोई ऐसा मौक़ा आ जाये कि आपको उनकी रक्षा करनी पड़े!

युवक–कुश्ती लड़ना तो नहीं जानता, हाँ, फुटबाल, हॉकी वगैरह खूब खेल सकता हूँ।

मुंशी–कुछ गाना-बजाना जानते हो? शायद राजा साहब को सफ़र में कुछ गाना सुनने का जी चाहे, तो उन्हें खुश कर सकोगे?

युवक–जी नहीं, मैं मुसाहब नहीं होना चाहता, मैं तो एकाउंटैण्ट की जगह चाहता हूँ।

मुंशी–यह तो आप पहले ही कह चुके। मैं यह जानना चाहता हूँ कि आप हिसाब-किताब के सिवा और क्या कर सकते हैं? आप तैरना जानते हैं?

युवक–तैर सकता हूँ, पर बहुत कम।

मुंशी–आप रईसों के दिलबहलाव के लिए किस्से-कहानियाँ, चुटकुले-लतीफे कह सकते हैं?

युवक–(हँसकर) आप तो मेरे साथ मज़ाक कर रहे हैं।

मुंशी–जी नहीं, मज़ाक नहीं कर रहा हूँ, आपकी लियाक़त का इम्तहान ले रहा हूँ। तो आप सिर्फ़ हिसाब करना जानते हैं। और शायद अंग्रेज़ी बोल और लिख लेते होंगे। मैं ऐसे आदमी की सिफ़ारिश नहीं करता। आपकी उम्र होगी कोई २४ साल की। इतने दिनों में आपने सिर्फ़ हिसाब लगाना सीखा। हमारे यहाँ तो कितने ही आदमी छः महीने में ऐसे अच्छे मुनीम हो गए हैं। कि बड़ी-बड़ी दूकाने सँभाल सकते हैं। आपके लिए यहाँ जगह नहीं है।

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