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उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


मनोरमा कुछ देर तक मौन रहने के बाद बोली–बाबूजी, आपका हृदय बड़ा कठोर है।

चक्रधर ने विस्मित होकर मनोरमा की ओर देखा, मानो इसका आशय उनकी समझ में न आया हो।

मनोरमा बोली–मैंने इतना सब कुछ किया, फिर भी आपको मुझसे सहायता लेने में संकोच हो रहा है।

चक्रधर ने दृढ़ भाव से कहा–मनोरमा, मैं नहीं चाहता कि किसी को तुम्हारे विषय में कुछ आक्षेप करने का अवसर मिले।

मनोरमा फिर कुछ देर तक मौन रहकर बोली–आपको मेरे विवाह की ख़बर कहाँ मिली?

चक्रधर–जेल में आहिल्या ने कही।

मनोरमा–क्या जेल में आपकी भेंट अहिल्या से हुई थी?

चक्रधर–हाँ, एक बार वह आयी थी।

मनोरमा–यह ख़बर सुनकर आपके मन में क्या विचार आये थे? सच कहिएगा।

चक्रधर–मुझे तो आश्चर्य हुआ था।

मनोरमा–केवल आश्चर्य! सच कहिएगा।

चक्रधर ने लज्जित होकर कहा–नहीं मनोरमा, दु:ख भी हुआ और कुछ क्रोध भी।

मनोरमा का मुख विकसित हो उठा। ऐसा ज्ञात हुआ कि उसके पहलू से कोई काँटा निकल गया! एक ऐसी बात, जिसे जानने के लिए वह विकल हो रही थी, अनायास इस प्रश्न द्वारा चक्रधर के मुँह से निकल गई।

मनोरमा वहाँ से लौटी तो उसका चित्त प्रसन्न था। उसके कान में ये शब्द गूँज रहे थे–हाँ मनोरमा, दु:ख भी हुआ और कुछ क्रोध भी!

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