लोगों की राय

उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

320 पाठक हैं

राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


बालक को स्पर्श करते ही मनोरमा के ज़र्ज़र शरीर में स्फूर्ति-सी दौड़ गई। मानो किसी ने बुझते हुए दीपक की बत्ती उकसा दी हो! बालक को छाती से लगाए हुए उसे अपूर्व आनन्द मिल रहा था, मानो बरसों के तृषित कंठ को शीतल जल मिल गया हो, और उसकी प्यास न बुझती हो। वह बालक को लिये हुए बैठी और बोली–अहिल्या, मैं अब यह लाला तुम्हें न दूँगी। यह मेरा है। तुमने इतने दिनों तक मेरी सुधि न ली, यह उसी की सज़ा है।

राजा साहब ने मनोरमा को सँभालकर कहा–लेट जाओ। लेट जाओ। देह में हवा लग रही है क्या करती हो?

किन्तु मनोरमा बालक को लिये हुए कमरे के बाहर निकल गई। राजा साहब भी उसके पीछे-पीछे दौड़े कि कहीं वह गिर न पड़े। कमरे में केवल चक्रधर और अहिल्या रह गए। अहिल्या धीरे से बोली–मुझे अब याद आ रहा है कि मेरा भी नाम सुखदा था। जब मैं बहुत छोटी थी, तो मुझे लोग सुखदा कहते थे।

चक्रधर ने बेपरवाही से कहा–हाँ, यह कोई नया नाम नहीं।

अहिल्या–मेरे बाबूजी की सूरत राजा साहब से बहुत मिलती है।

चक्रधर ने उसी लापरवाही से कहा–हाँ, बहुत से आदमियों की सूरत मिलती है।

अहिल्या–नहीं, बिलकुल ऐसे ही थे।

चक्रधर–हो सकता है। बीस वर्ष की सूरत अच्छी तरह ध्यान में भी तो नहीं रहती।

अहिल्या–ज़रा तुम राजा साहब से पूछो तो कि आपकी सुखदा कब खोयी थी?

चक्रधर झुँझलाकर कहा–चुपचाप बैठो, तुम इतनी भाग्यवान नहीं हो राजा साहब की सुखदा कहीं खोई नहीं, मर गई होगी।

राजा साहब इसी वक़्त बालक को गोद में लिये मनोरमा के साथ कमरे में आये। चक्रधर के अंतिम शब्द उनके कान में पड़ गए। बोले–नहीं बाबूजी, मेरी सुखदा मरी नहीं, त्रिवेणी के मेले में खो गई थी। आज बीस साल हुए, जब मैं पत्नी के साथ त्रिवेणी स्नान करने प्रयाग गया था, वहीं सुखदा खो गई थी। उसकी उम्र कोई चार-साल की रही होगी। बहुत ढूँढ़ा, पर कुछ पता न चला। उसकी माता उसके वियोग में स्वर्ग सिधारी। मैं भी बरसों तक पागल बना रहा। अन्त में सब्र करके बैठ रहा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book