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उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


सहसा चक्रधर को एक बात याद आ गई। तुरन्त मनोरमा के पास आकर बोले–मैं आपसे एक विनय करने आया हूँ! धन्नासिंह के साथ मैंने जो अत्याचार किया है, उसका कुछ प्रायश्चित करना आवश्यक है।

मनोरमा ने मुस्कुराकर कहा–बहुत देर में इसकी सुधि आयी! मैंने उसकी कुल जोत मुआफ़ी कर दी है।

चक्रधर ने चकित होकर कहा–आप सचमुच देवी हैं! तो मैं जाकर उन सबों को इत्तला दे दूँ?

मनोरमा–आपका जाना आपकी शान के खिलाफ है। इस ज़रा-सी बात की सूचना देने के लिए भला, आप क्या जाइएगा? तो आपने कब जाने का विचार किया है?

चक्रधर–आज ही रात को।

मनोरमा ने मुस्कराते हुए कहा–हाँ, उस वक़्त अहिल्या देवी सोती भी होंगी।

एक क्षण के बाद फिर बोली–मैं अहिल्या होती, तो सब कुछ छोड़कर आपके साथ चलती।

यह कहते-कहते मनोरमा ने लज्जा से सिर झुका लिया। जो बात वह ध्यान में भी न लाना चाहती थी, वह उसके मुँह से निकल गई। उसने उसी वक़्त शंखधर को उठा लिया और बाग़ के दूसरी तरफ़ चली गयी, मानो उनसे पीछा छुड़ाना चाहती है, या शायद डरती है कि कहीं मेरे मुँह से कोई और असंगत बात न निकल जाए।

चक्रधर कुछ देर तक वहाँ खड़े रहे, फिर बाहर चले गये। किसी काम में जी न लगा। सोचने लगे। ज़रा शहर में चलकर अम्माँ से मिलता जाऊँ! मगर डरे कि कहीं अम्माँ शिकायतों का दफ़्तर न खोल दें। निर्मला एक बार यहाँ आयी थी; मगर एक ही सप्ताह में ऊबकर चली गई थी। अहिल्या की रुखाई से उसका दिल खट्टा हो गया था। जो अहिल्या शील और विनय की पुतली थी, वह यहाँ सीधे मुँह बात भी न करती थी।

ज्यों-ज्यों संध्या निकट आती थी, उनका जी उचाट होता जाता था। पहले कहीं बाहर जाने में जो उत्साह होता था, उसका अब नाम भी न था। जानते थे कि छलके हुए दूध पर आँसू बहाना व्यर्थ है; किंतु इस वक़्त बार-बार स्वर्गवासी मुंशी यशोदानंदन पर क्रोध आ रहा था। अगर उन्होंने मेरे गले में फंदा न डाला होता, तो आज मुझे क्यों यह विपत्ति झेलनी पड़ती? मैं तो राजा की लड़की से विवाह न करना चाहता था। मुझे तो धनी कुल की कन्या से भी डर लगता था। विधाता को मेरे ही साथ यह क्रीड़ा करनी थी!

संध्या समय वह राजा साहब से पूछने गये। राजा साहब ने आँखों से आँसू भरकर कहा–बाबूजी, आप धुन के पक्के आदमी हैं, मेरी बात आप क्यों मानने लगे; मगर मैं इतना कहता हूँ कि अहिल्या रो-रोकर प्राण दे देगी और आपको बहुत जल्द लौटकर आना पड़ेगा। अगर आप उसे ले गये, तो शंखधर भी जाएगा और मेरी सोने की लंका धूल में मिल जाएगी। आख़िर आपको यहाँ क्या कष्ट है?

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