लोगों की राय

उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

320 पाठक हैं

राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


चक्रधर को बराबर एक ही बात का दुहराना बुरा मालूम होता था। कुछ झुँझलाकर बोले–इसी से तो मैं जाना चाहता हूँ कि यहाँ कोई कष्ट नहीं है। विलास में पड़कर अपना जीवन नष्ट नहीं करना चाहता।

राजा–और इस राज्य को कौन सँभालेगा?

चक्रधर–राज्य सँभालना मेरे जीवन का आदर्श नहीं है। फिर आप तो हैं ही।

राजा–तुम समझते हो, मैं बहुत दिन जीऊँगा? सुखी आदमी बहुत दिन नहीं जीता, बेटा! यह सब मेरे मरने के सामान हैं। मैं मिथ्या नहीं कहता। मुझे ऐसा आभास हो रहा है कि मेरे दिन निकट आ गये हैं। शंखधर, तलवार क्यों लाये हो?

शंकधर–तुमको मालेंगे।

राजा–क्यों भाई, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?

शंखधर–अम्मा लानी लोती हैं, तुमने उनको क्यों माला है?

राजा–लो साहब, यह नया अपराध मेरे सिर पर मढ़ा जा रहा है। चलो, ज़रा देखूं तो तुम्हारी अम्मा लानी को किसने मारा है। क्या सचमुच रोती हैं?

शंखधर–बली देल से लोती हैं।

राजा साहब तो तुरंत अंदर चले गये। मनोरमा के रोने की ख़बर सुनकर वह व्याकुल हो उठे। अंदर जाकर देखा, तो मनोरमा सचमुच रो रही थी। कमल पुष्प में ओस की बूँदें झलकर रहीं थीं। राजा साहब ने आतुर होकर पूछा–क्या बात है, नोरा? कैसा जी है?

मनोरमा ने आँसू पोंछते हुए कहा–अच्छी तो हूँ!

राजा–तो आँखें क्यों लाल हैं?

मनोरमा–आँखें तो लाल नहीं हैं। (ज़रा रुककर) अहिल्या देवी बाबूजी के साथ जा रही हैं। लल्लू को भी ले जाएँगी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book