उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
|
8 पाठकों को प्रिय 320 पाठक हैं |
राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
३
कई महीने बीत गए। चक्रधर महीने के अन्त में रुपये लाते और माता के हाथ पर रख देते। अपने लिए उन्हें रुपये की कोई ज़रूरत न थी। दो मोटे कुरतों पर साल काट देते थे। हाँ, पुस्तकों से उन्हें रुचि थी; पर इसके लिए कॉलेज का पुस्तकालय खुला हुआ था, सेवा-कार्य के लिए चन्दों से रुपये आ जाते थे। मुंशी वज्रधर का मुँह भी कुछ सीधा हो गया। डरे की इससे ज़्यादा दबाऊँ तो शायद यह भी हाथ से जाय। समझ गए कि जब तक विवाह की बेड़ी पाँव में न पड़ेगी, यह महाशय काबू में न आएँगे। वह बेड़ी बनवाने का विचार करने लगे।
मनोरमा की उम्र अभी तेरह वर्ष से अधिक न थी; लेकिन चक्रधर को उसे पढ़ाते हुए झेंप होती थी। वह यही प्रयत्न करते थे कि ठाकुर साहब की उपस्थिति में ही उसे पढ़ाएँ। यदि कभी ठाकुर साहब कहीं चले जाते, तो चक्रधर को महान संकट का सामना करना पड़ता था।
एक दिन चक्रधर इसी संकट में जा फँसे। ठाकुर साहब कहीं गए हुए थे। चक्रधर कुर्सी पर बैठे; पर मनोरमा की ओर न ताककर द्वार की ओर ताक रहे थे, मानो वहाँ बैठते डरते हों। मनोरमा वाल्मीकीय रामायण पढ़ रही थी। उसने दो-तीन बार चक्रधर की ओर ताका, पर उन्हें द्वार की ओर ताकते देखकर फिर किताब देखने लगी। उसके मन में सीता वनवास पर एक शंका हुई थी और वह इसका समाधान करना चाहती थी। चक्रधर ने द्वार की ओर ताकते हुए पूछा–चुप क्यों बैठी हो, आज का पाठ क्यों नहीं पढ़तीं?
मनोरमा–मैं आपसे एक बात पूछना चाहती हूं, आज्ञा हो तो पूछूँ?
चक्रधर ने कातर भाव से कहा–क्या बात है?
मनोरमा–रामचन्द्र ने सीताजी को घर से निकाला, तो वह चली क्यों गयीं?
चक्रधर–और क्या करतीं?
मनोरमा–वह जाने से इनकार कर सकती थीं। एक तो राज्य पर उनका अधिकार भी रामचन्द्र ही के समान था, दूसरे वह निर्दोष थीं। अगर वह यह अन्याय न स्वीकार करतीं, तो क्या उन पर कोई आपत्ति हो सकती थी?
चक्रधर–हमारे यहाँ पुरुषों की आज्ञा मानना स्त्रियों का परम धर्म माना गया है। यदि सीताजी पति की आज्ञा न मानतीं, तो वह भारतीय सती के आदर्श से गिर जातीं।
मनोरमा–यह तो मैं जानती हूँ कि स्त्री को पुरुष की आज्ञा माननी चाहिए। लेकिन क्या सभी दशाओं में? जब राजा से साधारण प्रजा न्याय का दावा कर सकती है, तो क्या उसकी स्त्री नहीं कर सकती? जब रामचन्द्र ने सीता की परीक्षा ले ली थी और अन्तःकरण से उन्हें पवित्र समझते थे, तो केवल झूठी निन्दा से बचने के लिए उन्हें घर से निकाल देना कहाँ का न्याय था?
|