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उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


दवा ने जाते ही अपना असर दिखाया। रानी के मुखमण्डल पर फिर वही मनोरम छवि, अंगों में फिर वही चपलता, वाणी में फिर वही सरसता, आँखों में वहीं मधुर हास्य कपोलों पर वही अरुण ज्योति शोभा देने लगी। वह उठकर झूले पर जा बैठीं। झूला धीरे-धीरे झूलने लगा। रानी का आँचल हवा से उड़ने लगा और केश बिखर गए।  यही मोहिनी छवि वह राजकुमार को दिखाना चाहती थीं।

एक क्षण में राजकुमार ने झूलाधार में प्रवेश किया। रानी झूले से उतरना ही चाहती थीं कि वह उनके पास आ गए और बोले–क्या मधुर कल्पना स्वप्न साम्राज्य में विहार कर रही हैं?

रानी–जी नहीं, प्रतीक्षा नैराश्य की गोद में विश्राम कर रही है। इतनी देर क्यों राह दिखाई?

राजकुमार–मेरा अपराध नहीं। मैं आ ही रहा था कि विश्वविद्यालय के कई छात्र आ पहुँचे और मुझे एक गम्भीर विषय पर व्याख्यान देने के लिए घसीट ले गए। बहुत हीले-हवाले किए, लेकिन उन सबने एक न सुनी।

रानी–तो मैं आपसे शिकायत कब करती हूँ। आप आ गए, यह क्या कम अनुग्रह है? न आते तो मैं क्या कर लेती? लेकिन इसका प्रायश्चित करना पड़ेगा, याद रखिए आज रात भर क़ैद रखूँगी।

राजकुमार–अगर प्रेम के कारावास में रहना प्रायश्चित है, तो मैं उससे जीवनपर्यन्त रहने को तैयार हूँ।

रानी–आप बातें बनाने में निपुण मालूम होते हैं। इन निर्दयी केशों को ज़रा सँभाल दीजिए, बार-बार मुख पर आ जाते हैं।

राजकुमार–मेरे कठोर हाथ उन्हें स्पर्श करने योग्य नहीं हैं।

रानी ने कनखियों से–मर्मभेदी कनखियों से–राजकुमार की ओर देखा। यह असाधारण जवाब था। उन कोमल सुगन्धित, लहराते हुए केशों के स्पर्श का अवसर पाकर ऐसा कौन था, जो अपना धन्य भाग न समझता! रानी दिल में कटकर रह गई। उन्होंने पुरुष को सदैव विलास की एक वस्तु समझा था। प्रेम से उनका हृदय कभी आन्दोलित न हुआ था। वह लालसा को ही प्रेम समझती थीं। उस प्रेम से, जिसमें त्याग और भक्ति है, वह वंचित थीं; लेकिन इस समय उन्हें इसी प्रेम का अनुभव हो रहा था। उन्होंने दिल को बहुत सँभाल कर राजकुमारों से इतनी बातें की थीं। उनका अन्तःकरण उन्हें राजकुमारों से यह वासनामय करने पर धिक्कार रहा था। सिर नीचा करके कहा–यदि हाथों की भाँति हृदय भी कठोर है, तो वहाँ प्रेम का प्रवेश कैसे होगा?

राजकुमार–बिना प्रेम के तो कोई उपासक देवी के सम्मुख नहीं जाता। प्यास के बिना भी आपने किसी को सागर की ओर जाते देखा है?

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