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उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


मैं–आपको अपने पूर्व जन्म का ज्ञान योग द्वारा ही हुआ होगा?

महात्मा–नहीं, मैं पहले ही कह चुका हूँ कि मैं योगी नहीं, प्रयोगी हूँ। तुमने तो विज्ञान पढ़ा है, क्या तुम्हें मालूम नहीं कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड विद्युत का अपार सागर है। जब हम विज्ञान द्वारा मन के गुप्त रहस्य जान सकते हैं, तो क्या अपने पूर्व-संस्कार न जान सकेंगे? केवल स्मृति को जगा देने से ही पूर्व जन्म का ज्ञान हो जाता है।

मैं–मुझे भी वह ज्ञान प्राप्त हो सकता है?

महात्मा–मुझे हो सकता है, तो आपको क्यों न हो सकेगा! अभी तो आप थके हुए हैं। कुछ भोजन करके स्वस्थ हो जाइए, तो मैं आपको अपनी प्रयोगशाला की सैर कराऊँ।

मैं–क्या आपकी प्रयोगशाला भी यहीं है?

महात्मा–हाँ, इसी कमरे से मिली हुई है। आप क्या भोजन करना चाहते हैं?

मैं–उसके लिए आप कोई चिन्ता न करें। आपकी जूठन मैं भी खा लूँगा।

महात्मा–(हँसकर) अभी नहीं खा सकते। अभी तुम्हारी पाचन-शक्ति इतनी बलवान नहीं है। तुम जिन पदार्थों को खाद्य समझते हो, उन्हें मैंने बरसों से नहीं खाया। मेरे लिए उदर को स्थूल वस्तुओं से भरना वैसा ही अवैज्ञानिक है, जैसे इस वायुयान के दिनों में बैलगाड़ी पर चलना। भोजन का उद्देश्य केवल संचालन शक्ति को उत्पन्न करना है। जब वह शक्ति हमें भोजन करने के लिए अपेक्षा कहीं आसानी से मिल सकती है, तो उदर को क्यों अनावश्यक वस्तुओं में भरें? वास्तव में आनेवाली जाति उदरविहीन होगी।

यह कहकर उन्होंने मुझे थोड़े से फल खिलाए, जिनका स्वाद आज तक याद करता हूँ। भोजन करते ही मेरी आँखें खुल-सी गईं। ऐसे फल न जाने किस बाग़ में पैदा होते होंगे। यहाँ की विद्युत्मय वायु ने पहले ही आश्चर्यजनक स्फूर्ति उत्पन्न कर दी थी। यह भोजन करके तो मुझे ऐसा मालूम होने लगा कि मैं आकाश में उड़ सकता हूँ। वह चढ़ाई, जिसे मैं असाध्य समझ रहा था, अब तुच्छ मालूम होती है।

अब महात्माजी मुझे अपनी प्रयोगशाला की सैर कराने चले। यह एक विशाल गुफा थी, जिसके विस्तार का अनुमान करना कठिन था। उसकी चौड़ाई ५०० हाथ से कम रही होगी। लम्बाई उसकी चौगुनी थी। ऊँची इतनी कि हमारे ऊँचे-ऊँचे मीनार भी उसके पेट में समा सकते थे। बौद्ध मूर्तिकार की अद्भुत् चित्रकला यहाँ भी विद्यमान थी। यह पुराने समय का कोई विहार था। महात्माजी ने उसे प्रयोगशाला बना लिया था।

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