उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
इस कथन में शिष्टता की मात्रा अधिक और नीति की बहुत कम थी, फिर भी सभी राज्य कर्मचारियों को यह बातें अप्रिय जान पड़ीं। सबके कान खड़े हो गए और हरिसेवक को तो ऐसा मालूम हुआ कि यह निशाना मुझी पर है। उनके प्राण सूख गए। सभी आपस में कानाफूसी करने लगे।
कुँवर साहब ने लोगों को ले जाकर फ़र्श पर बैठाया और खुद मसनद लगाकर बैठे। नज़राने की निरर्थक रस्म अदा होने लगी। बैण्ड ने बधाई देनी शुरू की। चक्रधर ने पान और इलायची से सबका सत्कार किया। कुँवर साहब का जी बार-बार चाहता था कि घर में जाकर यह सुख-संवाद सुनाऊँ, पर मौक़ा न देखकर जब्त किए हुए थे। मुंशी वज्रधर अब तक खामोश बैठे थे। ठाकुर हरिसेवक को यह खुशखबरी सुनाने का मौक़ा देकर उन्होंने अपने ऊपर कुछ कम अत्याचार न किया था। अब उनसे चुप न रहा गया। बोले–हुज़ूर, आज सबसे पहले मुझी को यह हाल मालूम हुआ।
हरिसेवक ने इसका खण्डन किया–मैं भी तो आपके साथ ही पहुँच गया था।
वज्रधर–आप मुझसे ज़रा देर से पहुँचे। मेरी आदत है कि बहुत सवेरे उठता हूँ। देर तक सोता, तो एक दिन भी तहसीलदारी न निभती। बड़ी हुकूमत की जगह है, हुज़ूर! वेतन तो कुछ ऐसा ज़्यादा न था; पर हुज़ूर, अपने इलाके का बादशाह था। खैर, ड्यौढ़ी पर पहुँचा तो सन्नाटा छाया हुआ था। न दरबान का पता, न सिपाही का। घबराया कि माज़रा क्या है। बेधड़क अन्दर चला गया। मुझे देखते ही गुजराती रोती हुई दौड़ी और तुरन्त रानी साहब का खत लाकर मेरे हाथ में रख दिया। रानीजी ने उससे शायद यह खत मेरे ही हाथ में देने को कहा था।
हरिसेवक–यह तो कोई बात नहीं। मैं पहले पहुँचता, तो मुझे ख़त मिलता। आप पहले पहुँचे, आपको मिल गया।
वज्रधर–आप नाराज़ क्यों होते हैं? मैंने तो केवल अपना विचार प्रकट किया है। वह ख़त पढ़कर मेरी जो दशा हुई, बयान नहीं कर सकता। कभी रोता था, कभी हँसता था। यही जी चाहता था कि उड़कर हुज़ूर को खबर दूँ। ठीक उसी समय ठाकुर साहब पहुँचे। है न यही बात, दीवान साहब?
हरिसेवक–मुझे बाहर ख़बर मिल गई थी। आदमियों को चौकसी रखने की ताक़ीद कर रहा था।
वज्रधर–आपने बाहर से जो कुछ किया हो, मुझे उसकी खबर नहीं, अन्दर आप उसी वक़्त पहुँचे, जब मैं खत लिए खड़ा था। मैंने आपको देखते ही कहा–सब कमरों में ताला लगवा दीजिए और दफ़्तर में किसी को न जाने दीजिए।
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