लोगों की राय

उपन्यास >> मनोरमा (उपन्यास)

मनोरमा (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :283
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8534
आईएसबीएन :978-1-61301-172

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

274 पाठक हैं

‘मनोरमा’ प्रेमचंद का सामाजिक उपन्यास है।


चक्रधर– कोई आठ बजे मिला होगा। पढ़ते ही मेरे होश उड़ गये। रानी जी की क्या हालत है?

राजा– वह तो अपनी आंखों से देखोगे, मैं क्या कहूं। अब भगवान ही का भरोसा है। अहा! यह शंखधर महाशय हैं।

यह कहकर उन्होंने बालक को गोद में ले लिया और स्नेह पूर्ण नेत्रों से देखकर बोले-मेरी सुखदा बिलकुल ऐसी ही थी। ऐसा जान पड़ता है, यह उसका छोटा भाई है। उसकी सूरत अभी तक मेरी आँखों में है। मुख से बिल्कुल ऐसी ही थी।

अन्दर जाकर चक्रधर ने मनोरमा को देखा। वह मोटे गद्दों में ऐसी समा गयी थी कि मालूम होता था कि पलंग खाली है, केवल चादर पड़ी हुई है। चक्रधर की आहट पाकर उसने मुंह चादर से निकाला। दीपक के क्षीण प्रकाश में किसी दुर्बल की आह! असहाय नेत्रों से आकाश की ओर ताक रही थी!

राजा साहब ने आहिस्ता से कहा– नोरा, तुम्हारे बाबूजी आ गए।

दर्शन भी हो गए। तार न जाता तो आप क्यों आते?

चक्रधर– मुझे तो बिल्कुल ही खबर ही न थी। तार पहुंचने पर हाल मालूम हुआ।

मनोरमा– (बालक को देखकर) अच्छा! अहल्या देवी भी आई हैं? जरा यहां तो लाना अहल्या! इसे छाती से लगा लूं!

राजा– इसकी सूरत सुखदा से बहुत मिलती है, नोरा! बिल्कुल उसका छोटा भाई मालूम होता है।

‘सुखदा’ का नाम सुनकर अहल्या पहले भी चौंकी थी। अबकी वही शब्द सुनकर फिर चौंकी! बाल-स्मृति किसी भूले हुए स्वप्न की भांति चेतना क्षेत्र में आ गयी। उसने घूंघट की आड़ से राजा साहब की ओर देखा। उसे अपने स्मृति पट पर ऐसा ही आकार खिंचा हुआ मालूम पड़ा।

बालक को स्पर्श करते ही मनोरमा के जर्जर में एक स्फूर्ति-सी दौड़ गयी। मानो किसी ने बुझते हुए दीपक की बत्ती उकसा दी हो। बालक को छाती से लगाये हुए उसे अपूर्व आनन्द मिल रहा था। मानों बरसों से तृषित कण्ठ को शीतल जल मिल गया हो, और उसकी प्यास न बुझती हो। वह बालक को लिए बैठी और बोली-अहल्या, मैं अब यह लाल तुम्हें न दूंगी। यह मेरा है। तुमने इतने दिनों तक मेरी सुध न ली, उसी की सजा है।

राजा साहब ने मनोरमा को संभालकर कहा– लेट जाओ। देह में हवा लग रही है। क्या करती हो…

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book