उपन्यास >> निर्मला (उपन्यास) निर्मला (उपन्यास)प्रेमचन्द
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अद्भुत कथाशिल्पी प्रेमचंद की कृति ‘निर्मला’ दहेज प्रथा की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्तम उपन्यास है…
सिन्हा–इन वकील साहब को क्या सूझी थी, जो इस उम्र में ब्याह करने चले?
सुधा–ऐसे आदमी न हों, तो गरीब क्वारियों की नाव कौन पार लगाये? तुम और तुम्हारे साथी बिना भारी गठरी लिए बात नहीं करते, तो फिर ये बेचारी किसके घर जायँ? तुमने यह बड़ा भारी अन्याय किया है, और तुम्हें इसका, प्रायश्चित करना पड़ेगा। ईश्वर उसका सुहाग अमर करे। लेकिन वकील साहब को कहीं कुछ हो गया, तो बेचारी का जीवन ही नष्ट हो जायगा। आज तो वह बहुत रोती थी। तुम लोग सचमुच बड़े निर्दयी हो। मैं तो अपने सोहन का विवाह किसी गरीब लड़की से करूँगी।
डॉक्टर साहब ने यह पिछला वाक्य नहीं सुना। वह घोर चिन्ता में पड़ गये। उनके मन में यह प्रश्न उठ-उठकर विकल करने लगा। कहीं वकील साहब को कुछ हो गया तो? आज उन्हें अपने स्वार्थ का भयंकर स्वरूप दिखायी दिया। वास्तव में यह उन्हीं का अपराध था। अगर उन्होंने पिता से जोर देकर कहा होता कि मैं और कहीं विवाह नहीं करूँगा, तो क्या वह उनकी इच्छा के विरुद्ध उनका विवाह कर देते?
साहसा सुधा ने कहा–कहो तो कल तुम्हारी निर्मला से मुलाकात करा दूँ? वह भी जरा तुम्हारी सूरत देख ले। वह कुछ बोलेगी तो नहीं, पर कदाचित् एक दृष्टि से वह तुम्हारा इतना तिरस्कार कर देगी, जिसे तुम कभी न भूल सकोगे। बोलो; कल मिला दूँ? तुम्हारा बहुत संक्षिप्त परिचय भी करा दूँगी।
सिन्हा ने कहा–नहीं सुधा, तुम्हारे हाथ जोड़ता हूँ, कहीं ऐसा गजब न करना! नहीं तो सच कहता हूँ, घर छोड़कर भाग जाऊँगा।
सुधा–जो काँटा बोया है; उसका फल खाते क्यों इतना डरते हो? जिसकी गर्दन पर कटार चलाई है, जरा से तड़पते भी तो देखो। मेरे दादाजी ने पाँच हजार दिये न! अभी छोटे भाई के विवाह में पाँच-छः हजार और मिल जायेंगे। फिर तो तुम्हारे बराबर धनी संसार में कोई दूसरा न होगा। ग्यारह हजार बहुत होते हैं। बाप-रे-बाप! ग्यारह हजार! उठा-उठाकर रखने लगे, तो महीनों लग जायँ। अगर लड़के उड़ाने लगे, तो तीन पीढ़ियों तक चले। कहीं से बात हो रही है या नहीं?
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