उपन्यास >> निर्मला (उपन्यास) निर्मला (उपन्यास)प्रेमचन्द
|
364 पाठक हैं |
अद्भुत कथाशिल्पी प्रेमचंद की कृति ‘निर्मला’ दहेज प्रथा की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्तम उपन्यास है…
इस परिहास से डॉक्टर साहब इतना झेंपे कि सिर तक न उठा सके। उनका सारा वाक्-चातुर्य गायब हो गया। नन्हा-सा मुँह निकल आया, मानों मार पड़ गई हो। इसी वक्त किसी ने डॉक्टर साहब को बाहर से पुकारा। बेचारे जान लेकर भागे। स्त्री कितनी परिहास कुशल होती है- इसका आज परिचय मिल गया। रात को डॉक्टर साहब शयन करते हुए सुधा से बोले। निर्मला की तो कोई बहिन है न?
सुधा–हाँ, आज उसकी चर्चा तो करती थी। इसको चिन्ता अभी से सवार हो रही है। अपने ऊपर तो जो कुछ बीतना था, बीत चुका, बहिन की फिक्र में पड़ी हुई थी। माँ के पास तो अब और भी कुछ नहीं रहा, मजबूरन किसी ऐसे ही बूढ़े बाबा के गले वह भी मढ़ दी जायगी।
सिन्हा-निर्मला तो अपनी माँ की मदद कर सकती है।
सुधा ने तीक्ष्ण स्वर में कहा–तुम भी कभी-कभी बिलकुल बेसिर-पैर की बातें करने लगते हो। निर्मला बहुत करेगी, तो दो-चार सौ रुपये दे देगी; और क्या कर सकती है। वकील साहब का यह हाल हो रहा है; उसे अभी पहाड़-सी उम्र काटनी है। फिर कौन जाने उनके घर का क्या हाल है। इधर छः महीने से घर बैठे हैं। रुपये आकाश से थोड़े ही बरसते हैं दस-बीस हजार होंगे, कुछ निर्मला के पास तो रक्खे न होंगे। हामारा २००/ महीने का खर्च है, तो क्या इनका ४००/ रुपये महीने का भी न होगा?
सुधा को तो नींद आ गई, पर डॉक्टर साहब बहुत देर तक करवट बदलते रहे। फिर कुछ सोचकर उठे और मेज पर बैठकर एक पत्र लिखने लगे।
|