उपन्यास >> निर्मला (उपन्यास) निर्मला (उपन्यास)प्रेमचन्द
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अद्भुत कथाशिल्पी प्रेमचंद की कृति ‘निर्मला’ दहेज प्रथा की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्तम उपन्यास है…
डॉक्टर ने संदिग्ध स्वर से कहा–हाल जो कुछ है, वह आप देख ही रहे हैं। १०६ डिग्री का ज्वर है, और मैं क्या बताऊँ? अभी ज्वर का प्रकोप बढ़ता ही जाता है। मेरे किये जो कुछ हो सकता है, कर रहा हूँ। ईश्वर मालिक है। जब से आप गये हैं, मैं एक मिनट के लिए भी यहाँ से नहीं हिला। भोजन तक नहीं कर सका। हालत नाजुक है, कि एक मिनट में क्या हो जायगा, नहीं कहा जा सकता? यह महाज्वर है, बिल्कुल होश नहीं है। रह-रह कर डिलीरियम का दौरा-सा हो जाता है। क्या घर में इन्हीं ने कुछ कहा है! बार-बार अम्माँजी, तुम कहाँ हो यही आवाज मुँह से निकलती है।
डॉक्टर साहब यह कह रहे थे कि सहसा मंसाराम उठकर बैठ गया और धक्के से मुंशी जी को चारपाई के नीचे ढकेलकर उन्मत्त स्वर में बोला-क्यों धमकते हैं आप मार डालिए, मार डालिए, अभी मार डालिए। तलवार नहीं मिलती! रस्सी का फन्दा है या वह भी नहीं! मैं अपने गले में लगा लूँगा। हाय अम्माँजी तुम कहाँ हो यह कहते-कहते वह फिर अचेत होकर गिर पड़ा।
मुंशीजी एक क्षण तक मंसाराम की शिथिल मुद्रा की ओर व्यथित नेत्रों से ताकते रहे फिर सहसा उन्होंने डॉक्टर साहब का हाथ पकड़ लिया और अत्यन्त दीनतापूर्ण आग्रह से बोले-डॉक्टर साहब, इस लड़के को बचा लीजिए-ईश्वर के लिए बचा लीजिए-ईश्वर के लिए बचा लीजिए, नहीं तो मेरा सर्वनाश हो जाएगा, मैं अमीर नहीं हूँ। लेकिन आप जो कुछ कहेंगे वह हाजिर करूँगा, इसे बचा लीजिए। आप बड़े से बड़े डॉक्टरों को बुलाइए, और उनकी राय लीजिए मैं -मैं सब खर्च दूँगा। इसकी यह दशा अब नहीं देखी जाती! हाय, मेरा होनहार बेटा!
डॉक्टर साहब ने करुणा स्वर में कहा–बाबू साहब मैं आपसे सत्य कह रहा हूँ कि इनके लिए अपनी तरफ से कोई बात उठा नहीं रहा हूँ। अब दूसरे डॉक्टरों से सलाह लेने को कहते हैं। अभी डॉक्टर लाहिरी डॉक्टर भाटिया और डॉक्टर माथुर को बुलाता हूँ। विनायक शास्त्री को बुलाये लेता हूँ, लेकिन मैं आपको व्यर्थ का आश्वासन नहीं देना चाहता-हालत नाजुक है।
मुंशीजी ने रोते हुए कहा–नहीं डॉक्टर साहब यह शब्द मुँह से न निकालिये। हालत इसके दुश्मनों की नाजुक हो। ईश्वर मुझ पर इतना कोप न करेंगे। आप कलकत्ता और बम्बई के डॉक्टरों को तार दीजिए, मैं जिन्दगी भर आपकी गुलामी करूँगा। यही मेरे कुल का दीपक है। यही मेरे जीवन का आधार है। मेरा हृदय फाटा जा रहा है। कोई ऐसी दवा दीजिए जिससे इसे हमेशा आ जाय। मैं जरा अपने कानों से उसकी बातें सुनूँ कि उसे क्या कष्ट हो रहा है। हाय, मेरा बच्चा!
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