कहानी संग्रह >> पाँच फूल (कहानियाँ) पाँच फूल (कहानियाँ)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ
‘फिर तो कभी किसी को गाली न दोगे।'
‘कभी नहीं।'
‘अगर फिर कभी ऐसा किया, तो समझ लेना, मैं कहीं बहुत दूर नहीं हूँ।’
‘अब किसी को गाली न देगा।'
‘अच्छी बात है, अब मैं जाता हूँ, आज से मेरा इस्तीफा है। मैं कल इस्तीफा में यह लिखकर भेजूँगा कि तुमने मुझे गालियाँ दीं, इसलिए मैं नौकरी नहीं करना चाहता, समझ गये'
साहब—आप इस्तीफा क्यों देता है हम तो बरखास्त नहीं करता।
फतहचन्द—अब तुम जैसे पाजी आदमी की मातहती न करूँगा।
यह कहते हुए फतहचन्द कमरे से बाहर निकले और बड़े इतमीनान से घर चले। आज उन्हें सच्ची विजय की प्रसन्नता का अनुभव हुआ। उन्हें ऐसी खुशी कभी नहीं प्राप्त हुई थी। यही उनके जीवन की पहली जीत थी।
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