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पाँच फूल (कहानियाँ)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8564
आईएसबीएन :978-1-61301-105

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प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ


चलते-चलते मेरे पैर दुखने लगे, लेकिन उनकी मंजिल पूरी न हुई। सिर पर जेठ का सूरज चमक रहा था, पैर जले जा रहे थे, प्यास से गला सूखा जा रहा था, लेकिन वे बराबर चले जा रहे थे। आपस में बातें करते जाते थे, लेकिन अब मैं उनकी एक बात भी न समझ पाता। कभी-कभी एक-आध शब्द तो समझ जाता, लेकिन बहुत अंशों में मैं कुछ भी न समझ पाता था। वे लोग इस समय अपनी विजय पर प्रसन्न थे, और एक अफ्रीदी ने अपनी भाषा में एक गीत गाना शुरू किया। गीत बड़ा ही अच्छा था।

असदखाँ ने पूछा—सरदार साहब, वह गीत क्या था?

सरदार साहब ने कहा—उस गीत का भाव याद है। भाव यह है कि एक अफ्रीदी जा रहा है तो उसकी स्त्री कहती है—कहाँ जाते हो?

युवक उत्तर देता है—जाते हैं तुम्हारे लिए रोटी और कपड़ा लाने।

स्त्री पूछती है—और कुछ अपने बच्चों के लिए नहीं लाओगे?

युवक उत्तर देता है—बच्चे के लिए बन्दूक लाऊँगा, ताकि जब वह बड़ा हो, तो वह भी लड़े और अपनी प्रेमिका के लिए रोटी और कपड़ा ला सके।

स्त्री कहती है—यह तो कहो, कब आओगे?

युवक उत्तर देता है—आऊँगा तभी, जब कुछ जीत लाऊँगा, नहीं तो वहीं मर जाऊँगा।

स्त्री कहती है—शाबाश, जाओ, तुम वीर, तुम जरूर सफल होगे।

गीत सुनकर मैं मुग्ध हो गया। गीत समाप्त होते-होते हम लोग भी रुक गये। मेरी आँखें खोली गयीं। सामने बड़ा सा मैदान था और चारों ओर गुफायें बनी हुई थीं जो इन्हीं लोगों के रहने की जगह थीं।

फिर मेरी तलाशी ली गयी, और इस दफे सब कपड़े उतरवा लिये गये, केवल पायजामा रह गया। सामने एक बड़ा-सा शिला-खंड रक्खा हुआ था। सब लोगों ने मिलकर उसे हटाया और मुझे उसी ओर ले चले। मेरी आत्मा काँप उठी। यह तो जिन्दा कब्र में डाल देंगे। मैंने बड़ी ही वेदना पूर्ण दृष्टि से सरदार की ओर देखकर कहा—सरदार, सरकार तुम्हें रुपया देगी।

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