कहानी संग्रह >> पाँच फूल (कहानियाँ) पाँच फूल (कहानियाँ)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ
इसी पर दीवार की उस ओर एक भीषण हँसी की प्रतिध्वनि सुनाई दी और किसी ने खनखनाते हुए स्वर में कहा—पानी अब कल मिलेगा? प्याला दे दो, नहीं तो कल पानी नहीं मिलेगा।
क्या करता, हारकर प्याला वहीं पर रख दिया।
इसी प्रकार कई दिन बीत गये। नित्य दोनों समय चार रोटियाँ और एक प्याला पानी मिल जाता था। धीरे-धीरे मैं भी इस शुष्क जीवन का आदी हो गया। निर्जनता अब उतनी न खलती। कभी-कभी मैं अपनी भाषा में और कभी-कभी पश्तों में गाता। इससे मेरी तबियत बहुत-कुछ बहल जाती और हृदय भी शान्त हो जाता।
एक दिन रात्रि के समय मैं एक पश्तो गीत गा रहा था। मजनू झुलसाने वाले बगूलों से कह रहा था—तुममें क्या वह हसरत नहीं है, जो काफलों को जलाकर खाक कर देती है। आखिर वह गरमी मुझे क्यों नहीं जलाती? क्या इसीलिए कि मेरे अन्दर एक ज्वाला भरी हुई है?
देखो, जब लैला ढूँढती हुई यहाँ आवे, तो मेरा शरीर बालू से ढँक देना, नहीं तो शीशे की तरह लैला का दिल टूट जायगा।
मैंने गाना बन्द कर दिया। उसी समय छेद से किसी ने कहा—कैदी, फिर तो गाओ।
मैं चौंक पड़ा। कुछ खुशी भी हुई, कुछ आश्चर्य भी। पूछा—तुम कौन हो?
उसी छेद से उत्तर मिला—मैं हूँ तूरया, सरदार की लड़की।
मैंने पूछा—क्या तुमको यह गाना पसन्द है?
तूरया ने उत्तर दिया—हाँ, कैदी गाओ, मैं फिर सुनना चाहती हूँ।
मैं हर्ष से गाने लगा। गीत समाप्त होने पर तूरया ने कहा—तुम रोज यही गीत मुझे सुनाया करो। इसके बदले में मैं तुमको और रोटियाँ और पानी दूँगी।
तूरया चली गयी। इसके बाद मैं सदा रात के समय वह गीत गाता और तूरया सदा दीवार के पास आकर सुनती।
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