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पाँच फूल (कहानियाँ)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8564
आईएसबीएन :978-1-61301-105

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प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ


मेरे मनोरंजन का एक मार्ग और निकल आया।

धीरे-धीरे एक मास बीत गया, पर किसी ने अभी मेरे छुड़ाने के लिए रुपया न भेजा। ज्यों-ज्यों दिन बीतते जाते, मैं अपने जीवन से निराश होता जाता।

ठीक एक महीने बाद सरदार ने आकर कहा—कैदी, अगर कल तक रुपया न आयेगा, तो तुम मार डाले जाओगे। मैं अब रोटियाँ नहीं खिला सकता।

मुझे जीवन की कुछ आशा न रही। उस दिन न मुझसे खाया गया और न कुछ पिया ही गया। रात हुई, फिर रोटियाँ फेंक दी गयीं, लेकिन खाने की इच्छा नहीं हुई।

निश्चित समय पर तूरया ने आकर कहा—कैदी, गाना गाओ।

उस दिन मुझे कुछ अच्छा न लगता था। मैं चुप रहा।

तूरया ने फिर कहा—कैदी, क्या सो गया?

मैंने बड़े ही मलिन स्वर में कहा—नहीं, आज सोकर क्या करूँ, कल ऐसा सोऊँगा कि फिर जागना न पड़ेगा।

तूरया ने प्रश्न किया—क्यों, क्या सरकार रुपया न भेजेगी?

मैंने उत्तर दिया—भेजेगी तो, लेकिन कल तो मैं मार डाला जाऊँगा, मेरे मरने के बाद रुपया आया भी, तो मेरे किस काम का!

तूरया ने सांत्वना—पूर्ण स्वर में कहा—अच्छा, तुम गाओ, मैं कल तुम्हें मरने न दूँगी।

मैंने गाना शुरू किया। गाते समय तूरया ने पूछा—कैदी, तुम कटहरे में रहना पसन्द करते हो?

मैंने सहर्ष उत्तर दिया—हाँ, किसी तरह इस नरक से तो छुटकारा मिले। तूरया ने कहा—अच्छा, कल मैं अब्बा से कहूँगी।

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