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पाँच फूल (कहानियाँ)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8564
आईएसबीएन :978-1-61301-105

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प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ


दूसरे ही दिन मुझे उस अन्धकूप से बाहर निकाला गया। मेरे दोनों पैर दो मोटी शहतीरों के छेदों में बन्द कर दिये गये। और वे काठ की ही कीलों से प्राकृतिक गड्ढों में कस दिये गये।

सरदार ने मेरे पास आकर कहा—कैदी, पन्द्रह दिन की अवधि और दी जाती है, इसके बाद तुम्हारी गर्दन तन से अलग कर दी जायगी। आज दूसरा खत अपने घर को लिखो। अगर ईद तक रुपया न आया, तो तुम्हीं को हलाल किया जायगा।

मैंने दूसरा पत्र लिखकर दे दिया।

सरदार के जाने का बाद तूरया आयी। यह वही रमणी थी, जो अभी गयी है। यही उस सरदार की लड़की थी। यही मेरा गाना सुनती थी और इसी ने सिफारिश करके मेरी जान बचायी थी।

तूरया आकर मुझे देखने लगी। मैं भी उसकी ओर देखने लगा।

तूरया ने कहा—कैदी, घर में तुम्हारे कौन-कौन है?

मैंने बड़े ही कातर स्वर में कहा—दो छोटे-छोटे बालक, और कोई नहीं। मुझे मालूम था कि अफ्रीदी बच्चों को बहुत प्यार करते हैं।

तूरया ने पूछा—उसकी माँ नहीं है?

मैंने केवल दया के उपजाने के लिए कहा—नहीं, उनकी माँ मर गयी है। वे अकेले हैं। मालूम नहीं, जीते हैं या मर गये, क्योंकि मेरे सिवाय उनकी देख-रेख करने वाला और कोई न था।

कहते-कहते मेरी आँखों में आँसू भर आये। तूरया की भी आँखें सूखी न रहीं। तूरया ने अपना आवेग सँभालते हुए कहा—तो तुम्हारे कोई नहीं है? बच्चे अकेले हैं? बहुत रोते होंगे!

मैंने मन-ही-मन प्रसन्न होते हुए कहा—हाँ, रोते-जरूर होंगे। कौन जानता है शायद मर भी गये हों।

तूरया ने बात काटकर कहा—नहीं, अभी मरे न होंगे। अच्छा तुम रहते कहाँ हो? मैं जाकर पता लगा आऊँगी।

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