उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘मैं स्वाद लेना चाहती थी। वह मोटी औरत पीते-पीते चटाके मारती थी और कह रही थी–बहुत बढ़िया है।’’
‘‘बहुत स्वाद तो नहीं होती। हाँ, पीने के बाद आनन्द आता है।’’
‘‘तो तुमने पीकर देखी है?’’
‘‘हाँ।’’
‘‘कैसे?’’
‘‘ऐसे?’’ इतना कहकर उसने कोट की जेब से बोतल निकालकर दिखा दी।
‘‘तो तुम चोरी कर लाये हो?’’
‘‘नहीं, वह मोटी औरत आधी बोतल ही पीकर ‘टिप्सी’ हो गयी थी। मैंने उसके सामने से यह उठाकर मेज के नीचे छिपा दी थी और अब उठा लाया हूँ।’’
‘‘थोड़ी मुझको चखाओ।’’
‘‘हाँ, मगर बहुत थोड़ी पीना। ज्यादा पीने से लोग बेहोश भी हो जाते हैं।’’
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