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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘तुमने किसी को बेहोश देखा है?’’

‘‘हाँ।’’

‘‘अच्छा, थोड़ी ही पिऊँगी।’’

‘‘तो मेरे कमरे में आ जाओ। वहाँ मैंने एक गिलास भी छिपाकर रखा है।’’

ऐना जॉर्ज के साथ-साथ उसके कमरे में चली गयी। जॉर्ज ने मेज की दराज में से काँच का एक गिलास निकाला और मेज पर रखकर दो चम्मच-भर उसमें डाल दी।

जब ऐना पीने लगी तो जॉर्ज ने उठकर कमरे का दरवाजा बन्द कर दिया। ऐना ने थोड़ी-सी मुँह में डाली और कड़वी समझ थू-थू कर फेंक दी। कुछ मेज पर और कुछ भूमि पर गिर पड़ी। जॉर्ज ने कहा, ‘‘यह क्या किया?’’

‘‘यह तो कड़वी है।’’

‘‘एक घूँट पीनी थी।’’

‘‘क्या होगा पीने से? मेरा तो मुख जलने लगा है।’’

‘‘इसका स्वाद पीने से चार-पाँच मिनट पीछे आता है। अच्छा, यह लो।’’ जॉर्ज ने अलमारी से बिस्कुटों का एक पैकेट निकालकर उसको दे दिया।

ऐना ने एक बिस्कुट खाया तो उसका मुख कुछ ठीक हुआ। अब उसने एक चुस्की और ली। इस बार उसको उतनी कड़वी नहीं लगी। बिस्कुट के मुख से लगे रहने के कारण कड़वाहट कम अनुभव हुई थी।

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