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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


उसने एक बिस्कुट और खाने के पश्चात् एक घूँट और पी डाली। अब उसके पेट में गर्मी-सी अनुभव हुई। इससे उसका मुख बिगड़ा तो जॉर्ज ने उसको एक बिस्कुट और देकर कहा, ‘‘इसको मुख में रखकर चूसो।’’

ऐना ने बिस्कुट चूसा तो जलन कुछ कम हुई। इस समय जॉर्ज ने चौथाई गिलास पी डाली। ऐना और पीने की इच्छा करने लगी तो जॉर्ज ने दो चम्मच-भर और दे दी। इस बार उसको गर्मी भी अनुभव हुई। वह और माँगने लगी। जॉर्ज देना नहीं चाहता था। ऐना हठ करने लगी।

उसके शरीर में स्फूर्ति आने लगी थी। वह लपककर उसके बिस्तर पर चली गयी। ऐना उससे बोतल छीनने लगी। विवश हो जॉर्ज ने उसको थोड़ी-सी और दे दी। वह स्वयं भी कुछ अधिक पी गया था।

अब उसने बोतल को देखा। वह काफी कम हो गयी थी। इससे घबराकर जॉर्ज ने कहा, ‘‘शेष कल के लिए रख छोड़ते हैं।’’

उसने बोतल को अपनी अलमारी में पुस्तकों के पीछे छिपाकर रख दिया। इस समय तक ऐना को नशा होने लगा था।

जब जॉर्ज बोतल को छिपाकर रख आया तो वह मुस्कराती हुई नशे का स्वाद ले रही थी। उसने कहा, ‘‘इट इज डेविलिश स्वीट।’’

‘‘स्वीट नहीं कहते इसे। यह तो बहुत आनन्द देती है।’’

‘‘मुझको ऐसा अनुभव हो रहा है कि मैं बहुत हलकी हो गयी हूँ। चाहूँ तो उड़ सकती हूँ।’’

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