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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘तो तुम समझीं नहीं। मेरा मतलब है कि विष्णु और मैंने। परीक्षाफल के निकलते ही हम पति-पत्नी होने की घोषणा कर देंगे।’’

‘‘यह तो बहुत बुरा किया है तुमने।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘तुम दोनों अल्पवयस्क हो। तुमको विवाह करने का अधिकार नहीं है।’’

‘‘तो हम इसी प्रकार तीन वर्ष तक प्रतीक्षा करेंगे।’’

‘‘देखें।’’

प्रैक्टिकल की परीक्षा के दिन रजनी ने इसी बात की ओर संकेत किया था। इन्द्रनारायण कुछ-कुछ ही समझ पाया था। इसके पश्चात् दोनों में कुछ अधिक बात नहीं हुई। इन्द्रनारायण ने आगे बात करने का यत्न भी नहीं किया।

रजनी, रजनी की माँ, रजनी का भाई शान्तिस्वरूप और भाभी सरोज आदि नैनीताल गये हुए थे। रजनी के पिता लखनऊ हाईकोर्ट के वकील थे। अच्छी आय थी। पिता ने बच्चों और अपनी पत्नी को नैनीताल भेज दिया और स्वयं कोर्ट बन्द होने की प्रतीक्षा में था। रजनी का भाई विवाहित था और अपनी पत्नी को भी साथ ले गया था। वह ठेकेदारी करता था। रजनी ने जाने से पूर्व अपने पिता रमेशचन्द्र सिन्हा से कह दिया था कि उसका परीक्षा-फल घोषित होते ही उसको तार दिया जाये और साथ ही ‘लीडर’ की वह प्रति, जिसमें परिणाम छपे, उसको भेज दी जाये।

नैनीताल में रमेशचन्द्र सिन्हा की अपनी कोठी थी। ये सब वहाँ ठहरे हुए थे। शान्तिस्वरूप वहाँ के बोटिंग क्लब का सदस्य भी था। इस प्रकार दिन ‘बोटिंग’ में और घोड़ों पर इधर-उधर घूमने में व्यतीत हो रहे थे। तब पिता का तार आया–‘रजनी पास, फर्स्ट डिवीजन, पाँच सौ नब्बे अंक।’

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