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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘तो क्या हुआ? वह सुन्दर है। मुझको प्रिय है। इन बातों से उसके विवाह का क्या सम्बन्ध हो सकता है?’’

‘‘तो तुम उससे विवाह नहीं करना चाहतीं?’’

‘‘और तुम क्या विष्णु से विवाह करना चाहती हो?’’

‘‘बिल्कुल, यदि उसके माता-पिता ने बाधा न खड़ी की तो।’’

‘‘अभी तो तुम दोनों नाबालिग हो। इस कारण उसके माता-पिता नाराज हों तो वयस्क होने तक प्रतीक्षा करनी होगी।’’

‘‘यह तो कर ही रहे हैं। परन्तु तुम्हारे लिए तो कोई आशा ही नहीं?’’

‘‘मैंने आशा बाँधी ही नहीं। मेरा उससे स्नेह बहन-भाई का-सा है।’’

इरीन हँस पड़ी। हँसकर वह बोली, ‘‘तुम अभागी हो। जिससे प्रेम करती हो, उसको भुजाओं में पकड़कर छाती से भी नहीं लगा सकतीं।’’

‘‘मैं प्रेम का यह परिणाम नहीं मानती।’’

इसके पश्चात् तो रजनी, इरीन और स्मिथ से बुद्धू और बदकिस्मत समझी जाने लगी। इण्टरमीडिएट की परीक्षा के कुछ दिन पूर्व ही इरीन ने रजनी को बताया, ‘‘हमने गुप्त रूप से विवाह कर लिया है।’’

‘‘हमने? क्या मतलब?’’

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