उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘वह फेल हो गया है और मेरे पास होने का समाचार मुझ तक भेजने से उसके मन में दुःख होता था। उसने डाक ही गुम कर ली और घर पर कह दिया कि तार और पत्र भेज दिये गये हैं।
‘‘आपके पत्र से समाचार पा, जब मैं लखनऊ पहुँचा और नानी तथा नानाजी से कहा कि मुझको उनका भेजा कोई भी समाचार नहीं मिला तो नानी ने विष्णु को डाँटा और इस डाँट के कारण विष्णु घर से भाग गया।
‘‘दो दिन तक प्रतीक्षा करने पर जब वह नहीं लौटा तो हम सब उसको ढूँढ़ने लगे। मेरा अनुमान था कि वह इरीन के साथ होगा। अतः कॉलेज से इरीन का पता ले हम उसके पिता से मिले। उसके पिता ने बताया कि वह बम्बई घूमने गयी है।
‘‘मैंने पूछा, ‘वह किस डिवीजन में पास हुई है?’ तो उसकी माँ ने बताया कि वह फोर्थ डिवीजन में पास हुई है, अर्थात् अनुत्तीर्णों की श्रेणी में।
‘और उसके फेल होने के उपलक्ष्य में आपने उसको बम्बई की सैर के लिए भेज दिया है?’ मैंने पुनः पूछा।
‘हाँ। जी बहलाने के लिये।’ उसका उत्तर था।
‘हमारा विश्वास था कि विष्णु उसके साथ ही गया है। दोनों के अनुत्तीर्ण होने से हमारे विश्वास में वृद्धि हो गई। मैंने इरीन का पता पूछा तो उसकी माँ ने मेरे प्रश्न का कारण पूछ लिया। मैंने बता दिया, ‘उसका एक सहपाठी विष्णुस्वरूप भी फेल होकर घर से लापता है।’
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