उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘नहीं, वह उसके साथ नहीं हो सकता।’
‘‘इरीन की माँ ने उसका बम्बई में पता नहीं बताया।’’
‘‘हम समझ नहीं सके कि अब किस प्रकार विष्णु का पता लगायें। तीन दिन हुए उसका तार आ गया। तार बम्बई से आया था। लिखा था कि उसके पास आने के लिये रुपया नहीं है। तार द्वारा रुपया भेज दिया जाये।
‘‘नानाजी ने एक सौ रुपया भेजा और वह आज लखनऊ पहुँच गया है। वह कुछ नहीं बताता कि इरीन उसके साथ थी अथवा वह अकेला था। यह पता चला है कि नानीजी की संदूकची में पाँच सौ रुपया चोरी हो गया है।
‘‘आज आपके पत्र का उत्तर लगभग दो सप्ताह के पश्चात् भेज रहा हूँ। सबसे पहले तो भाई की बधाई बहन को मिले कि वह आशा से अधिक अंक लेकर पास हो गयी है। मैंने तो सदा ही ऐसी आशा करता था और वह आशा पूर्ण हुई है। मैं इसका अर्थ यह समझता हूँ कि आप मेडिकल कॉलेज में पढ़ेंगी।
‘‘मैं अपने विषय में अभी कोई निर्णय नहीं कर सका। एक दिन कॉलेज के कार्यालय में जाकर वहाँ का खर्चा तो पता चला कि लगभग एक सहस्र रुपया वार्षिक व्यय तो कॉलेज की फीस इत्यादि का ही होगा। इसके अतिरिक्त वस्त्र, भोजन और बोर्डिंग हाउस का व्यय। नानाजी के घर पर अब मैं नहीं रह सकता। इस प्रकार सब मिल-मिलाकर सात-आठ हजार का खर्चा कृत कर रहा हूँ। पाँच वर्ष में इतना व्यय हो जायेगा।
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