उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘अभी भूख नहीं। यदि हम समय रहते आ गये तो भोजन कर लेंगे। हम दो बजे की गाड़ी से जा रहे हैं।’’
‘‘तो राधा के लिए लड़का नहीं देखेंगे?’’
‘‘जब जेब में पाँच हजार होंगे तो देखने आ जायेंगे।’’
‘‘जब विष्णु के लिए किसी को आना हो तो उसको पाँच नहीं, बीस हजार तक लेकर आना होगा। परन्तु मैं तो एक बहुत ही भले आदमी के लड़के की बात कर रही हूँ।’’
‘‘कौन हैं वे?’’ सौभाग्यवती ने पूछ लिया।
‘‘दीदी!’’ साधना का उत्तर था, ‘‘कहो तो अभी आप सबको वहाँ ले चलती हूँ। लड़का देख लो। शेष पीछे विचार लेंगे।’’
‘‘देखो साधना!’’ रामाधार ने कह दिया, ‘‘हम देहाती लोग नगर वालों की बात नहीं जानते। कहो तो देख लेते हैं। परन्तु मैं लेने-देने की बात नहीं मानूँगा। मैं दूँगा अपनी इच्छा से और अपनी शक्ति के अनुसार। विवश होकर कुछ भी नहीं दूँगा।’’
‘‘जीजाजी! लेन-देन की बात फिर होती रहेगी। देखने में कुछ हानि है क्या?’’
इस पर रामाधार, सौभाग्यवती और इन्द्र साधना के साथ इक्के में सवार होकर चल पड़े। साधना ने इक्के वाले को रकाबगंज चलने के लिए कह दिया।
जब इक्का रकाबगंज में पहुँचकर एक मकान के सामने खड़ा हुआ तो बाहर एक वैद्य का बोर्ड लगा देखकर सब साधना का मुख देखने लगे। साधना ने बताया, ‘‘पण्डित ज्ञानेन्द्रदत्त एक विख्यात वैद्य हैं। उनका द्वितीय पुत्र महेन्द्रदत्त मैट्रिक पास कर सेक्रेटोरिएट में नौकरी करता है।’’
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