उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
साधना उन सबको लेकर भीतर चली गयी। वैद्यजी बैठक में बैठकर रोगी देख रहे थे। साधना ने वैद्यजी को नमस्कार की तो वैद्यजी समझ गये। उन्होंने कहा, ‘‘आइये पण्डितजी! बैठिये। मैं अभी खाली हुआ जाता हूँ।’’
पण्डित ज्ञानेन्द्रदत्त सीतापुर के रहने वाले थे और अब लखनऊ में चिकित्सा-कार्य करते थे। उनका पहला लड़का भी वैद्य था और पिता के साथ ही वैद्यक करता था। दूसरा मैट्रिक पास कर सरकारी कार्यालय में पचपन रुपये मासिक वेतन पाता था।
बड़े लड़के महेश्वरदत्त ने सुपारी-पान निकालकर पिता-पुत्र के सामने रख दिया। साधना घर के भीतर चली गयी।
पण्डित ज्ञानेन्द्र ने वहाँ बैठे रोगियों को विदा किया और फिर रामाधार से बातें करने लगा।
‘‘पण्डितजी! यह आपका लड़का है क्या?’’ वैद्यजी ने पूछ लिया।
‘‘जी। इसका नाम इन्द्रनारायण है।’’
‘‘हमने इसका परीक्षा-फल देखा है। इसे इतने अंक लेकर पास करते देख चित्त बहुत प्रसन्न हुआ है।’’
‘‘तो साधना ने इसका उल्लेख किया है?’’
‘‘जी। जब उसने अपनी भानजी की बात कही तो सबसे पहले लड़की के माता-पिता तथा बहन-भाइयों का वृत्तान्त जानना आवश्यक था।’’
‘‘तो आप हम सबके विषय में पूछताछ कर चुके हैं?’’
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