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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


खाते हुए रामाधार ने साधना से कहा, ‘‘राधा के लिए यह वर उपयुक्त नहीं।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘यह अभी सात-आठ वर्ष के बच्चों की-सी बातें करता है। राधा इससे अधिक पढ़ी-लिखी और समझदार प्रतीत होती है।’’

‘‘सत्य? कौन-सी श्रेणी में पढ़ती है वह?’’

‘‘देखो साधना! अंग्रेजों ने यहाँ आकर पढ़ाई करने वालों की श्रेणियाँ बना रखी हैं। जो वर्णमाला पढ़ें वे कच्ची-पहली में, जो पहली पुस्तक पढ़ने लगें वे पक्की-पहली श्रेणी में। इसी प्रकार दूसरी पुस्तक पढ़ते और गणित में जमा-बाकी के प्रश्न हल करने की योग्यता वालों की दूसरी श्रेणी है। हम इस प्रकार की श्रेणियों में विद्यार्थियों को बाँटना व्यर्थ समझते हैं।

‘‘भाषा तथा गणित इत्यादि पढ़ने वाले सब विद्यार्थियों की एक ही श्रेणी होती है। मैं इस श्रेणी को पशु से मनुष्य बनने ही श्रेणी अथवा आरम्भिक श्रेणी मानता हूँ। वास्तव में इतना ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् श्रेणियाँ बनती हैं। उन श्रेणियों में सात्त्विक, राजसी और तामसी प्रकृति के अनुकूल तीन, और फिर इनके सम्मिश्रण से अन्य कई श्रेणियाँ बनती हैं। उन श्रेणियों में अभी महेन्द्र पहुँचा ही नहीं। वह मेरे विचार में अभी आरम्भ की श्रेणी में ही भटक रहा है। राधा भाषा और व्यावहारिक गणित सीखकर अब सात्त्विक विचार वालों की श्रेणी में जा पहुँची है।

‘‘इस श्रेणी में से उसका पतन हो सकता है। सीखा हुआ भूल जाने से मनुष्य ज्ञानहीन भी हो सकता है। इसी प्रकार राधा सात्त्विक से राजसी और राजसी से तामसी प्रकृति वालों की श्रेणी में जा सकती है। मैं समझता हूँ कि महेन्द्र से विवाह हो जाने पर वह अवश्य तामसी विचार की बन जायेगी।

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