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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


रजनी साधना का कथन सुनकर आश्चर्यचकित रह गयी। साधना ने आगे कहा, ‘‘मैंने जब मौसी से कहा कि मैंने जीजाजी को तुम्हारे हाथ पत्र लिखकर भेज दिया है। तो वह मुझको लेकर तुम्हारे घर आयी, जिससे यदि तुम नहीं गयी को पत्र वापस ले लिया जाये। परन्तु तुम जा चुकी थीं, तीर हाथ से निकल चुका था। मैं भी इस विषय में उसका विश्वास खो चुकी थी। इस कारण मन से प्रसन्न परन्तु ऊपर से विवशता प्रकट करते हुए मैं मौसी को वापस ले गयी।

‘‘मेरा विचार था कि बात समाप्त हो गयी है। परन्तु आज वह पुनः मेरे घर आयी है। वह जीजाजी के मन में पत्र की प्रतिक्रिया जानने के लिए बैठी हुई है।’’

‘‘रजनी ने कह दिया, ‘‘राधा के विचार तो मैंने पहले ही बताये थे। उसने अपने पत्र में स्पष्ट लिख दिया था कि उसके लिए प्रस्तावित घर उसके अनुकूल नहीं रहेगा। जब मैं वहाँ गयी तो उसने बताया कि उसके प्रस्तावित ससुराल वाले वैश्य-वृत्ति के लोग हैं। वह एक ब्राह्मण कुमार से विवाह करने की इच्छा रखती है। उसने यह भी कहा था कि वह अपनी सन्तान का पिता एक ब्राह्मण चाहती है।

‘‘अब आप ही बताइये कि क्या किया जाये?’’

‘‘बात तो उसकी ठीक ही प्रतीत होती है। परन्तु रजनी! उसकी इच्छा की पूर्ति हो सकेगी क्या? कोई संसार में उसके मापदण्ड का लड़का मिल भी सकेगा? वास्तव में हम अपने जीवन में एक-दूसरे के अनुकूल होने-करने का प्रयत्न करते रहते हैं। मैं तो इसी में जीवन की सफलता मानती हूँ।’’

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