उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘पण्डितजी! उसका इससे क्या संबंध है?’’
‘‘नहीं भाई! नहीं लूँगा। बता दिया है न कि लड़के के मुहूर्त के समय ही ले लूँगा।’’
इस पर रामजियावन ने शिवकुमार को सम्बोधन कर कह दिया, ‘‘देखो बेटा! पण्डित रामाधार-जैसा नेक तथा विद्वान तुम पूरे अवध-भर में भी नहीं पाओगे। बहुत नालायकी कर चुके हो, जो दहेज माँग बैठे थे। खैर! तुम आए हो तो क्षमा-याचना कर इनको प्रसन्न कर लो।’’
जब रामजियावन चला गया था तो रामाधार शिवकुमार को लेकर अपनी बैठक में चला आया। वह वहाँ गया तो राधा वहाँ आ गयी। उसने आँखों में आँसू भरे हुए कहा, ‘‘बाबा! मेरे लिए खाने को इस घऱ में नहीं रहा तो बता क्यों नहीं दिया? मैं अपने को समाप्त कर दूँगी, परन्तु...।’’
रामाधार ने राधा को चुप कराते हुए कहा, ‘‘क्या है, बेटी! रो क्यों रही हो?’’
‘‘वही स्त्री, जो रजनी बहन के विवाह के दूसरे दिन आयी थी, आज फिर आयी हुई है और माँ को फुसला रही है।’’
रामाधार ने राधा को सावधान करने के ले लिए कह दिया, ‘‘और यह,’’ उसने शिवकुमार की ओर संकेत कर कहा, ‘‘उस स्त्री के सुपुत्र हैं, जिनकी वह सिफारिश कर रही है।’’
‘‘तो ये यहाँ क्यों आए हैं?’’ राधा ने उत्तेजना में कह दिया।
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