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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


रामजियावन अपनी धोती की टेंट से पाँच रुपये का एक नोट निकाल रहा था। शिवकुमार ने कह दिया, ‘‘पूज्यपाद! मैं उन्हीं जन्मपत्रों के विषय में कुछ कहने आया हूँ, जिनकी बात आप अभी बता रहे थे। मेरे पिताजी ने भी आपकी लड़की और मेरी जन्म-पत्री का मिलान किया है। उन्होंने मुझको बताया नहीं था, जिससे मैं साधना बहन से कुछ अनुचित-सी बात कह बैठा था। उस वार्तालाप के पश्चात् पिताजी ने मुझको दोनों कुण्डलियाँ निकालकर, उनमें सामंजस्य दिखाया। इस पर मेरे विचारों में परिवर्तन आ गया है। कानपुर वालों की लड़की की तो कुण्डली ही नहीं थी। उन्होंने फूल का नाम लेकर बनवाकर भेजी थी। परन्तु उससे मेरे पत्रे का घोर विरोध दिखाई दिया है।

‘‘इस कारण मैं पुनः आपके चरणों में अपने कथन को वापस लेने के लिए उपस्थित हुआ हूँ।’’

रामजियावन हाथ में पाँच रुपये का नोट, जो पण्डित रामाधार को देने वाला था, पकड़े रह गया। जब उसने सामने उसी लड़के को बैठे देखा, जिसके विषय में रामाधार अभी बात कर रहा था, तो वह चकित रह गया। वह शिवकुमार का सुन्दर, सुडौल शरीर देख रहा था और विस्मय कर रहा था कि इस प्रकार के शरीर में कलुषित मन कैसे बन गया।

रामाधार ने रामजियावन के हाथ में पाँच रुपये का नोट देखकर कह दिया, ‘‘लाला, यह रुपया रखो। जब लड़के के विवाह का मुहूर्त निकलवाने आओगे, तो सब अगले-पिछले ले लूँगा। यह अब मैं नहीं लूँगा।’’

रामजियावन मुँह देखता रह गया। इस पर रामाधार ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारे भारी अहसान से दबा हूँ। उस सात सौ रुपये में से, जो मैंने इन्द्र की पढ़ाई के लिए लिए थे, अभी भी देने रहते हैं।’’

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